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________________ पउमचरिउ [ 10 ] - सीय त्रय सुर्णेवि जणु हरिसिउ । उच्चारड रोम परिचित ॥१॥ महुरणराहिव जस लोहड़ हरिसिङ साक्राणु सहुँ बहना तिष्णि वि विष्फुरन्त-मणि- कुण्डल । हरिसिय जणय-कणय- मामण्डल ||३|| हरिसिय लवणङ्कुस दुस्खील त्रि । हरिसिय वजङ्घ-गळ-गील वि ॥४॥ तारन्तरङ्ग - रम्भ-विससेण वि । दहि मुह कुसु- महिन्द्र सुसेण वि ||५|| चन्द्ररासि चन्द्रोयर णन्दण || ६ || लङ्काहिच सुग्गीङ्गङ्गय जम्वत्र पत्र णअय-पयणजय ||७| लोग्रवाल- गिरि-पहल समुह त्रि । त्रिसहरिन्द अमरिन्द गरिन्द वि॥८॥ १९० - वक्ख सङ्घ- सन्दण । तद्दलोकमन्तर बत्ति पर हियवएँ लुसु वहन्तउ धत्ता सलु वि जणवड हारेसियर | रहुबइ एक्कु ण हरियि ॥९॥ [१] तं जि समस्थित पुणु वएर्वे ||१|| हस्थ- सयाहूँ तिष्णि चड कोणी ॥२॥ काला गुरु चन्दण - सिरिहिं ॥३॥ कञ्चन-भत्र र चङ पास हि ॥ ४ ॥ इन्द-चन्द-रवि-हरि-चम्भा वि ॥५॥ संयि वय-सीएँ उपरि ॥ ६ ॥ इन्द्रुकुतनु ॥७॥ जहि । जइ विरुआरी तो म खमेजहि ॥en I मीय जं जे अवलेवें चुन कोक्किय खणय खणाषिय खोणी । पूरियस-लद विच्छ हिं । देवदार कप्पूर- सहार्से हिं । चडि राय आया गिवाण वि । हन्त्रण- पुजें घडिय परमेसरि । 'अहो देवों महु ता सह । जोन अवसार तुमि
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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