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पउमचरिउ
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सीय त्रय सुर्णेवि जणु हरिसिउ । उच्चारड रोम परिचित ॥१॥ महुरणराहिव जस लोहड़ हरिसिङ साक्राणु सहुँ बहना तिष्णि वि विष्फुरन्त-मणि- कुण्डल । हरिसिय जणय-कणय- मामण्डल ||३|| हरिसिय लवणङ्कुस दुस्खील त्रि । हरिसिय वजङ्घ-गळ-गील वि ॥४॥ तारन्तरङ्ग - रम्भ-विससेण वि । दहि मुह कुसु- महिन्द्र सुसेण वि ||५|| चन्द्ररासि चन्द्रोयर णन्दण || ६ ||
लङ्काहिच सुग्गीङ्गङ्गय
जम्वत्र पत्र णअय-पयणजय ||७|
लोग्रवाल- गिरि-पहल समुह त्रि । त्रिसहरिन्द अमरिन्द गरिन्द वि॥८॥
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- वक्ख सङ्घ- सन्दण ।
तद्दलोकमन्तर बत्ति पर हियवएँ लुसु वहन्तउ
धत्ता
सलु वि जणवड हारेसियर | रहुबइ एक्कु ण हरियि ॥९॥
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तं जि समस्थित पुणु वएर्वे ||१|| हस्थ- सयाहूँ तिष्णि चड कोणी ॥२॥ काला गुरु चन्दण - सिरिहिं ॥३॥ कञ्चन-भत्र र चङ पास हि ॥ ४ ॥ इन्द-चन्द-रवि-हरि-चम्भा वि ॥५॥ संयि वय-सीएँ उपरि ॥ ६ ॥ इन्द्रुकुतनु ॥७॥ जहि । जइ विरुआरी तो म खमेजहि ॥en
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मीय जं जे अवलेवें चुन कोक्किय खणय खणाषिय खोणी । पूरियस-लद विच्छ हिं । देवदार कप्पूर- सहार्से हिं । चडि राय आया गिवाण वि । हन्त्रण- पुजें घडिय परमेसरि । 'अहो देवों महु ता सह । जोन अवसार तुमि