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________________ बालीमो संधि 10 कहींपर वे इतने लाल हो उठे जैसे गेरूसे पहाड़ ही लाल हो उठा हो। कहीं पर अश्य आहत थे और कहींपर ध्वजाएँ गिर रही थीं। कहीं उन्नत कबंधोंके धड़ नाच रहे थे। इस प्रकार यह युद्ध एक-दूसरे की भिड़न्तसे भयंकर हो उठा । बहते हुए रक्तसे लाल-लाल दिखाई दे रहा था। 'प्रशित हक्कों' से एकदम भयं. कर हो उठा । पिशाचों और नागोंसे भयकर था । उसमें अनेक तूको ध्यान सुन पढ़ रही थी। स्थान-स्थानपर कौवे मँडरा रहे थे । सियारनियाँ मौसकी ओर धूर रही थीं। इतने में, जब कि संग्रामके बीच शत्रुसेना लड़ रही थी, अंकुश लक्ष्मणके ऊपर टूट पड़ा, और लवण रामके ऊपर ॥ १-१३ ।। [१५] आपस में लड़ते हुए दोनों ( लवण और राम ) ऐसे जान पड़ते थे जैसे देवने दो कामदेवोंकी सृष्टि कर दी हो, दोनों ही मनुष्योंमें सर्वश्रेष्ठ थे। दोनों ही ऐसे जमे हुए थे जैसे यमदूत हो । मानो स्वर्गमे इन्द्र और प्रतीन्द्र गिर पड़े हों, दोनों ही अपने-अपने श्रेष्ठ रथोंपर बैठे हुए थे। दोनों ही अपने प्रचण्ड धनुष चढ़ा रहे थे। दोनोंका एक दूसरेके प्रति प्रलय भाव था। दोनों ही दर्पसे उद्धत और रोषसे भरे हुए थे। दोनों देवबालाओंको सन्तोष दे रहे थे। दोनों के शरीरोंको युद्धबधूके आलिंगनका अनुभव था। दुष्टोंके साथसे दोनों कोसों दूर रहते थे। दोनोंने मृत्यु-शंकाकी उपेक्षा कर दी थी। दोनोंने ही पापपकको धो दिया था। इसी बीच विक्रममें श्रेष्ठ, कुमार लवणने धवलध्वजके साथ, रामका थनुष युद्धभूमिमें गिरा दिया ।। १-: ॥ [१६] अरण्यके पुत्रके प्रपौत्र शत्रुओंका वमन करनेवाले रामने दूसरा धनुष ले लिया, जो धनुष प्रलयकालके बालसूर्य के समान था, और जिसने मायावी सुग्रीवके प्राण लिये थे ।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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