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बासीमो संधि लक्ष्मणकी सेनामें दुन्दुभि बज उठी। रमणियोंके लिए अभिराम और तीनों लोकोंमें विख्यात नाम राम तैयारी करने लगे। प्रलयकालके समान और शम लक्षणोंको धारण करनेवाले लक्ष्मण भी तैयार होने लगे। और दूसरे राजा भी तैयार हो गये, विद्याधर और मनुष्य राजा सभी। हर्षसे भरी हुई, राम-लक्ष्मण और लवण-अंबुशकी सेनाएँ आपसमें लड़ने लगी 1-1
[१३]ोनों ही सेना निदाट शवओंका निवारण कर रही थी, दोनों में निरंकुश गज दौड़ रहे थे, दोनों ही उद्धत शत्रुओंका घमण्ड चर-चूर कर देती थीं। दोनों एक दूसरे पर अस्त्रोंसे प्रहार कर रही थीं। दोनोंको यशका लालच था । दोनों में संघर्प बढ़ता जा रहा था ! दोनों के शरीर, रणलक्ष्मीके आलिंगन के लिए उत्सुक थे। चारों ओर, अश्वखुरोंकी धूलसे धूमिलता-सी छा गयी थी। दोनों तलवारों को घुमा-फिरा रहे थे। तलवारकी किरणोंसे आकाश तल भयंकर हो उठा, गजमदसे धरती पंकिल हो उठी। रक्तकी नदियोंके प्रवाहसे पथ भर गये | महारथोंने धरतीको खोद दिया। पैदल सैनिकोंकी मारसे धरती दब गयी। दोनों एक दूसरेके ऊपर निश्चिन्त होकर प्रहार कर रहे थे । इस प्रकार वनजंघ और रामकी सेनाओंको ऊपरसे जब इन्द्रने देखा तो उसे लगा जैसे युद्धका भोजन करते हुए कालने अपने दो मुख कर लिये हो ॥ १-२ ।।
[१४] कहींपर योद्धा दौड़ रहे थे, जो सिंहके समान उद्धत विक्रम रखते थे। आक्रोशमें वे एक दूसरेको मार रहे थे। कहीं पर यदि हाथी आ जाते तो एक ही प्रहारमें समाप्त हो जाते | कहींपर तीरोंसे जर्जर मतवाले हाथी घूम रहे थे, कहींपर रक्तसे रंजित थे और उनके टूटे हुए दाँत रिस रहे थे।