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________________ यासट्टिमो संधि ዩና " सुन्दरी सुन, सचमुच तुम्हारे नितम्ब भारी हैं, उर विशाल है और उदर क्षीण है। निश्चय ही, मैं कल युद्ध के मैदान में खेल रचाऊँगा । उस मैदान में जो श्रेष्ठ अश्यों, गजों और मनुष्यों से खचाखच भरा है, और ध्वज-तोरणोंसे सजा । “उस युद्धके मैदानमें, मैं सचमुच तलवाररूपी चौगान लेकर हुँकारोंके साथ, शत्रुसिरोंकी गेदोंसे खेल खेलूंगा" ||१-२॥ [६] दुर्बार शत्रुओंको हटाने में समर्थ सुत-सारणके वचन सुनकर रावण वहाँ गया जहाँ तोयवाहनका प्रसाद था | वहाँ वह अन्तःपुरके साथ सजधज कर बैठा हुआ था। वह गवाक्षके जाल में जाकर ऐसा बैठ गया, मानो सिंह गिरिगुहा में घुसकर बैठ गया हो। रावणने अपने ही बेटेकी कहते हुए हुआ। । उसके वचन अत्यन्त उद्भट थे, और हर्षसे उसकी भुजाएँ फड़क रही थीं। वह कह रहा था, “प्रिये, मैं तुम्हें अपनी लीला का प्रदर्शन बताऊँगा । कल मैं युद्धरूपी वसन्तमें कोड़ा करूँगा । शत्रुके रक्तकपूरसे अपनेको भूषित करूँगा. और सज्जनोंके साथ चांचर खेल खेलूंगा, यम वरुण कुबेर इन्द्र आदि बड़े-बड़े देवताओंको नष्ट कर यश लूँगा । रावणके मन और नेत्रोंको अच्छी लगनेवाली सीतादेवी उसे दिलाऊँगा। हाथियोंके australia utavर असिरूपी वरांगनाका सन्धान करूँगा, और बादलोंमें राम-लक्ष्मणके तीरोंसे हिंदोल (झूला) बनाऊँगा ||१३|| [५० ] अजेय और अनिर्दिष्ट साधन मेघवाहन के ये वचन सुनकर रावण यहाँ गया, जहाँ दूसरेके मनका रमण करनेवाला जम्बुमाली कृतप्रतिज्ञ बैठा हुआ था। वह भी अपनी पत्नीसे गरज कर इस प्रकार कह रहा था, मानो सिंह सिंहनीसे कह रहा हो। उसने कहा, "हे सुन्दरी, सुनो कल मैं क्या करूँगा ?
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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