SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरिष्ठ सुणु फन्त कलें काई करमि । जिह खय-पाउसु तिह उस्थरमि ॥४॥ मजम्त-मत्त-मपगल-घणे हैि। दडिपार-भेरी-वरहिहि ।।५।। घन्दिणे हि लवन्तेहिं वरिपहि। पहरण-दुधाएँ हि वहु-विहहिं ।।६।। रहबर-पवरटभाडम्बरहि । अभिवर-विजुलं हि भयरहि ॥७॥ वत्ता छत्त-बालाया-पन्ति घाणु-सुरघणु दरिसन्ताउ । यस्मिमि सर-धारहि पर-वले पटउ करन्तर' || | [ ५१] तं णिमुणे वि गड हसु नहि। सफलता इन्द्रह-राड जहिं ||१|| नेग चि गलगजिउ गिय-भवणे । णावह लाल-जालहरेण गयणें ॥२॥ 'हदै ऋल्ल पालन हुआलु घाणें। लग्गेम्वमि राहव-मेगा-वणे ॥३॥ पाहरण-सिमीर-पहर-पउरें। सुन्दर-गारवर-नरुबर-णियर ।।७।। भुपदण्ड-पर-घालोलि-धरै। करपल-पल्लव-यह-कुसुम-मरे ||५|| मणहर-कामिगि लय-बेलहले। छत्तन्य-सुक-रुक्रय-बहल ॥६॥ हयगाय-वणयर णापणाग्रिह।। रिउ-पापा-ममुष्टाविय-विहएँ ॥७॥ उत्तर-तुरङ्गम-हरिण-हरें। हरि-इलहर-वर-वध्वय सिह ।। ताहि हउँ परब-दवगिग पर-वल कागणु सच्च कलावणे लग्गेस मि । छारही पुञ्ज करंसमि' ।।५|| [२] तं वयणु मुर्गेवि सञ्चल्लु नहि। मछु कुम्भयण णिय-भवणे अहि ।।१।। संग वि पबुतु 'हे इंसपई। कल रण-णहयले माणुबह ॥२॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy