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________________ बासहिमो संधि जायें। मैं दण्ड सहित साक्षात् यमराज हूँ। मैं शत्रओंके राजा. का नाम तक मिटा दूंगा, और समस्त शत्रु सेनाको जीतकर, रायणको भेंट चढ़ा दूंगा।" ॥ १-६ ।। E] यह सुनकर, रावण मन ही मन प्रसन्न हुआ। वह मारीयके घरकी ओर मुड़ा। विशालवाहु घह, पौछे जाकर खड़ा हो गया । उसने सुना कि मारीच अपनी पत्नीसे कह रहा था, "कल मैं रक्तरंजित युद्धसागरमें रणस्नान करूँगा । इस समुद्र में रथ और गजोंसे गन्ध बढ़ रही होगी । उत्तम तलवारों के लोहसे जो बहुत विस्तीणं है। जिसमें नर-श्रेष्ठोंके अंग कटपिट रहे हैं, जो यशको उखाड़ देता है, और बहुत सी बुराइयों का अन्त कर देता है । जयश्री की हल्दीसे जो विभूषित है। जिसमें बड़े-बड़े कुण्ड दिखाई दे रहे हैं, जिसमें शत्रसेना रूपी समुद्र आ मिला, जिसमें महाक दाबान हो जाता है। विद्याधरोंके रक्तसे, जो भरा हुआ है, और तलवारकी धाराओंसे भरपूर जो बहुत विशाल है। एसे उस विशाल रण समुद्र में, हाथीकी पीठपर बैठकर मैं कल स्नान करूंगा। हे प्रिये, जिससे मुझे इस जन्म में अग्रसका कलंक न लगे ॥ १-२ ।। [3] इन ऋर बचनोंको सुनकर, रावण सुत-सारणों के घर गया। उनमें से एक अपनी पत्नी के सामने कह रहा था, "हु प्रिये कल मैं रणकी सेजपर चढू गा, उस सेज पर जो तीनों लोकोंमें विख्यात है, चारों सेना जिसके चार पाये हैं । उत्तनउत्तम गोंक शरीर, जिसकी लम्बी आकृति बनाते हैं। उसकी सेजकै बीचमें सुन्दर हिलती हुई डोरिया लदक रहीं होगी। हड्डियों और धड़ों के समूहसे आक्रान्त गजकुम्भोंके तकिये जिसमें भरे पड़े हैं। जिसमें यशकी पताका लिये हुए लोग इथनियों और मतवाल गजों पर आरूढ़ है।" एक और ने कहा,
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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