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________________ पउमचरित किन-कुरुत-मिडि-भड-मासुराई। पहरन्ति परोपा गिट्टराई ॥१॥ उमय-बलइँ रहिर-जलोलियाई। तमिच्छ-नाई गं फुलिया ॥२॥ एम्श्रन्तर जग-मण-भाचिणीउ । कान्ति गयणे सुर-कामिनीउ ॥३।। 'हले वासवयत्तं वसन्त हैं हलं कामसेण हलें कामलेहैं ।।४।। हले कुमुम-मणोहरि हले अगड़ें। चित्त बरणे हल बा ॥५॥ जो दीमइ रगउहँ सुहडु एड्छु । कपिणय-खुरप-कप्परिय-दहु ।।६।। सन्वउ मिलेवि ऍडु मझु दछु । रण अगणु गसवि नुम्हें लेहु' ।।७।। अग्गा हरिमिन-गतिमाएँ। पणिड पप्फुल्लिय-वत्तियाएँ ॥८॥ घत्ता 'जो दन्ति-दन्तें आलग्गैत्रि ठरु भिन्दाविध अप्पगा। हले धाबहि काइँ गहिल्लिा ऍडु भतार महु तपाउ' ॥९|| [] जाम्ब बोल सुर-कामिणि-मन्थहौँ । तात्र वलेश समरे कान्धहीं ॥५॥ भग्गु असु वि रावग-साह। विलिय-पररगु गलिय-पसाहा ॥२॥ बिहुणियकर मुहकायर-णरवरु। दुष्ण-नुरन मु मोहिय रहयर ॥ ३ ॥ घसछस-आमल्लिय धयचडु । गरुय घाय-कछुवाविय-गय घड ।।४।। जं पासन्न पदीसिउ पर बलु। राहव-पक्विएहिं फिउ कलयालु ॥५॥ 'हले हले बारबार जं वणहि । जेण समाणु अगाणु ण माणहि ॥६॥ सं बल्ल पेश्वु पक्नु भजन्त। गं सवत्रणु दुव्वाएं छित्तउ ॥७॥ पं सजण-कुटुम्बु लाल-स। णाई कुमुणिवर-विस अणनं ॥६॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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