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________________ एकरसटिमो संधि राकी सेनाके हथियार छिन्न हो रहे हैं, सेना मन ही मन दुःखी है, वह बुरी तरह पिट रही है, रावणपक्षकी कमलनयना सुरवधुओंने ग्बूच खुशी मनायी। के कहने लगीं "हे सस्त्री, देखो सेना नष्ट हो रही है मानो सूर्य की किरणोंसे रात्रिका अन्धकार नष्ट हो रहा है। ठीक ही तो है, सियारका शरीर किनमा ही बड़ा क्यों न हो ? क्या वह सिंह के नखाघातको सह सकता है । जुगनूमें कितना ही तेज प्रकाश हो, क्या वह सूर्यको अपने रेजसे जीत सकता है । गदहेकी क्रीडा कितनी ही सुन्दर हा, क्या वह उत्तम गजको कोडाको पा सकता है ? मनुष्य कितना ही अजेय हो, क्या वह विद्याधरोंको पा सकता है ? झील कितनी ही बड़ी हो, क्या वह बड़े समुद्री समता कर सकती है ।। १-२॥ [६] इसी यीच-अपच, रथ, गज और वाहनसे युक्त राघवसेना, फिरसे मुड़ी। ऐसा लगा मानो अगसमुद्रका जल उल पड़ा हो । तूों के समूह बज उढे । कल-कल ध्वनि होने लगी। सुवर्णदण्ड मठा लिये गये, ध्वजपट फहरा उठे । गजघटा निरंकुश होकर अपनी सूंड उठाये हुई थी। अश्व जोत दिये गये । रथ चल पड़े। फिरसे उलटा सैनिकोंका विनाश होने लगा। योद्धा योद्धाकि ऊपर दौड़ पड़े, सिंह सिंह पर, और गजेन्द्र गजेन्द्र पर, रथी रथियों पर, और ध्वजान ध्वजामों पर, रथ श्रेष्ठरथों पर, अश्व अश्वों पर, धानुक धानुष्कों पर, फरशात्राज फरशायाजों पर, तलवार हाथ में लेकर लड़ने वाले, तलवार वालों पर । इस प्रकार, उन दोनों संघर्ष सेनाओंमें घोर संघर्ष हुआ। गजघटा चूर-चूर हो गयी। उनके मुखकी झूलें गिर गयीं । कवच टूट पड़े। अखोंका अवसर निकल जाने पर योद्धा आपसमें एक दूसरेके वाल खींचने लगे ॥ १-२ ।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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