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________________ सट्टिभो संधि साठवीं सन्धि शत्रु सेनाको देखकर, राघवने भी युद्ध के लिए कूच कर दिया। अतिरण के चावसे, उन्होंने विशेष प्रकारका कवच पहन लिया । [9] निशाचर राजाओं को कुचलनेमें समर्थ रामने, हथियार अपने हाथमें ले लिये। लम्बी मेखला लगा ली। उनका शरीर चन्दनसे चर्चित था। अपनी सुन्दर कान्तासे वह वियुक्त थे। उन्होंने मायासुग्रीवका अन्त किया था । वीरता से उनका शरीर त हो रहा था को टंकार रहे थे। उनके दोनों तूणीर कसमसा रहे थे। चंचल किंकिणियाँ रुनझुन कर रही थीं। उनके हाथोंमें सुन्दर कंकण बँधा हुआ था । उनका वक्षस्थल उन्नत और विशाल था । गण्डमण्डल कुण्डलोंसे शोभित था, उनके भालको चूड़ामणि चूम रहा था। उनका मुख और ओठ कान्तिसे खिले हुए थे। उनके नेत्र रक्त कमलकी भाँति थे । लक्ष्मणने जब देखा कि सेना तैयार हो चुकी है तो वह भी सहसा आवेश से भर उठा । आगके समान, वह शीघ्र ही भड़क उठा। उस समय ऐसा लगा मानो रावणके माथे में ददं हो उठा हो ॥१-१०॥ [ २ ] लक्ष्मण, जो चमकणके लिए आनन्ददायक था, और जिसने सिंहोरका मान गलित किया था, जिसने कल्याणमालाकी दर्शन दिये थे, विन्ध्यराजके पराक्रमको क्षण किया था, जिसके वने वनमालाका आलिंगन किया था, जो जितपद्मा के नामरूपी कमलके लिए भ्रमर था, जिसने राजा अरिदमनकी शक्तिको बात बावमें झेल लिया था, जिसने कुलभूपणके उपसर्ग-संकटको टाला था, जिसने चन्द्रनखा के पुत्र 1
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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