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पउमचरित
[७४, चउसत्तरिमो संधि]
दिवसयर विउन्हें विवाई। स-रहसइँ पाड्य-कम बलाई
रण-रसिय अमरिस-कुछाई । भिडियइँ राहव-समय-वल, ।।
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जाब रावणु जाइ णिय-गेहु । अन्तेउरु पइसरह
रह रयणि सई भोग्गा आवरु । ता ताडिय चड-पहरि उअय-सिंहरै उहिउ दिवायरु ।।
( मसा-गुन्दु) कसरि बच गह-मासुर-कर-पसरन्तउ ।
पहरें पहर निसि-य-ध ओसारतउ ॥१॥ तहि अवसर पखालिय-णयणु । अत्याण परिट्रिउ दहश्यणु ॥२॥ सामरिस-सिायर-परियरिउ । णं जमु जमकरणाकरित ॥३॥ यं रेसरि हरारुण-नाहिउ । णं गहवाइ लारायण-सहिउ ॥॥ गं दिपायरु पसरिय-का-णियर। णे विफ्फालय-अलु भयरहरु ॥५॥ णं सुरवाइ सुर-परिवेजिटयठ । सोडन्तु करगं दादियउ ||६|| रोसुग्गर उम्मूलियत हाधु । णिकरिय-गयणु सीहासणथु ।।।। सुय-भायर-परिभउ सम्भरेवि। भाजाविउ रज्जवि परिहरषि ॥४॥
घत्ता
असहन्तु सुरासुर-उमर-कर जम-धणय-पुरन्दर-वरुण-धरु । सजग-दुजगहुँ जणन्तु मर फुरियाहरु आउह-साल गव ॥१॥