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________________ ३६४ पउमचरित [७४, चउसत्तरिमो संधि] दिवसयर विउन्हें विवाई। स-रहसइँ पाड्य-कम बलाई रण-रसिय अमरिस-कुछाई । भिडियइँ राहव-समय-वल, ।। [1] जाब रावणु जाइ णिय-गेहु । अन्तेउरु पइसरह रह रयणि सई भोग्गा आवरु । ता ताडिय चड-पहरि उअय-सिंहरै उहिउ दिवायरु ।। ( मसा-गुन्दु) कसरि बच गह-मासुर-कर-पसरन्तउ । पहरें पहर निसि-य-ध ओसारतउ ॥१॥ तहि अवसर पखालिय-णयणु । अत्याण परिट्रिउ दहश्यणु ॥२॥ सामरिस-सिायर-परियरिउ । णं जमु जमकरणाकरित ॥३॥ यं रेसरि हरारुण-नाहिउ । णं गहवाइ लारायण-सहिउ ॥॥ गं दिपायरु पसरिय-का-णियर। णे विफ्फालय-अलु भयरहरु ॥५॥ णं सुरवाइ सुर-परिवेजिटयठ । सोडन्तु करगं दादियउ ||६|| रोसुग्गर उम्मूलियत हाधु । णिकरिय-गयणु सीहासणथु ।।।। सुय-भायर-परिभउ सम्भरेवि। भाजाविउ रज्जवि परिहरषि ॥४॥ घत्ता असहन्तु सुरासुर-उमर-कर जम-धणय-पुरन्दर-वरुण-धरु । सजग-दुजगहुँ जणन्तु मर फुरियाहरु आउह-साल गव ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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