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पउमचरित
अह एत्तउद काल जं घुक्की। अइ वि तिलोसिम रमाएधी। वार-यार से सई अन्मस्थमि। सुई में एक महरविय चुच्चाह ।
सं मड्डु जय-बारहरि गुरुको पा आ ण समिच्छ, सा ण लएवी 1.1 दर करि अन्तउरु अवहस्थमि ||९|| वामर-गाक्षिणा मा मुखहि ।.१०||
सुरवर संव करन्तु लक्षण-रामहुँ सत्ति
पत्ता षण छरड दिन्तु पुरै पइसरहि । दुष्षुद्धि व दू परिहरहि' ॥११॥
जाणेवि दु-कम्मु पारग्मित। बहुरूविष्णि-बहु-रव-वियम्भिउ ||१|| चिन्तिड दसरह-गन्दण पत्ति 'सखण-राम भिणइ विणु मन्तिएँ।॥२॥ बासु इम इ एव चिन्धई। बहुरूविणि-बहु-रूबई सिख ॥३॥ अण्ण इ सुरवर संक कराविय। चन्दि-बिन्द कलुगाई कन्दाविथ ।। १ ।। सो कि मई ण लेइ पिउ ण दणई' । आसझेवि देषि पुणु पभणइ ।।। 'दहमुह भुवण-विणिग्गय-गामें। खणु मि ण जिमि मरम्लें समें ॥६॥ जेस्थु पईधु तेत्थु सिह पज्जाइ । जेधु अग तस्थु रह जजइ ।।७।। जेधु सणेहु तेरथु पणयञ्जलि। जत्थु पया तेरधु किरणावलि ||८||
__ घत्ता जाहि ससहरू सहि जोह जहि परम धम्मु तर्हि जोत्र-दछ । जहिं राहड सहि सीम' मा एम मणेपिणु मुछ गय ॥५॥