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________________ लिससरिमो संघि [९] यह सुनकर, वह महासती काँप गयी 1 उसके हाथ फूल गये और आँखें कुछ-कुछ काँप गयीं । वह सोचने लगी"हे माँ, न जाने वह दुष्ट का दगा ? नाही कलंकित कर देगा।" इतने में देयताओंके समूहको सतानेवाला रावण अपने कंठोंके आमरण और मस्तक दिखाता हुआ सोतादेवीके पास इस प्रकार पहुँचा, मानो अनंगशराके पास पुनर्वसु चक्रवर्ती पहुँचा हो, मानो दीर्घ समास विभक्तिके पास पहुँचा हो, मानो छन्द वेव गायत्रीके पास पहुँचा हो । उसने कहा, "हे देवि बोलो, चाहे मैं दशानन सिंह होऊँ या न होऊँ, चाहे मेरा साहस तुमने सुना हो या न सुना हो, चाहे तुमने मेरी विक्रिया-शक्ति का प्रभाव देखा हो या न देखा हो, इस समय राम और लक्ष्मण, नल, सुग्रीव, नील और भामण्डल, मेरा क्या कर सकते हैं। और भी, इनके सिवा जितने दुष्ट हैं उन सबको मैंने धरतीपर लिटा दिया है । वे लोग भी अब कहीं न कहीं उसी प्रकार नष्ट हो जायेंगे जिस प्रकार सिंह के पैरोंकी चपेटमें आकर हरिण मारा जाता है ।। १-२॥ [१०] हे सीमन्तनि, मैं समुद्र पार करनेवाले कपिध्वजियोंको सेनाके नाम तककी रेखा मिटा दूंगा, तुम्हारे रामको यमपथपर भेज दूंगा। इन्द्रजीत और कुम्भकर्णकी भेंट हो जायगी और जिसे विशल्याने शल्य विहीन बना दिया है, वह लक्ष्मण भी कल लड़ाई में किसी भी प्रकार बच नहीं सकता। इसलिए तुम उन सबके जीनेकी आशा छोड़ दो, विमानमें बैठकर चलो और अपनी साज-सज्जा करो।" रत्नों-निधियों से सहित इस धरतीका पालन करो, मैं सुमेरु पर्वत जा रहा है, चलो जिन मन्दिरोंकी वन्दना कर लो। समुद्र, द्वीप, नदियाँ, सरोबर, महावृक्ष, पहाड़ और नन्दनवन चल कर देखो। अभी
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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