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पउमचरि
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कवि अहिसिन
- कुम्भ ।
छि पुरन्दरं व विमलश्मे ॥ १ ॥ कवि रुप्पिम कसे जल-गाहें पुष्णिव ससिमित्र जोण्डा-वाहें ॥२॥ कवि मरगय कळलेण उर-स्थलु । णलिणिव णकिण उडेण महीयलु ॥३॥ * वि कुङ्कुम-कलसेणायतें । सम्झ व विवसु दिवायर-विवें ॥३॥ मायएँ कीलऍ जयसिरि- माणणु । जब जय सऍ हाउ दलाणणु ॥५॥ विमल - सरोरु बाउ सक्केसरु | णं उप्पण्ण णाणु तिस्थवस ॥ ६ ॥ दिग्ाई सणु-लुहणाएँ सु-सह। खल- कुणि कणा इत्र लण्ड ॥७॥ मेल्लिय पोति जिपणेण व दुग्गइ । मोभाषिय केसा हूँ जलुग्म ॥८॥ पिणु सेयम्वक विसाव (?) । वेडिं सीसुरु
॥९५
३००
सोहडू धवलवण
सुरसरि वाहण
घत्ता
भावेदि दुससिरसिंह पवरु |
कलासह तण तु-सिहरु ॥ ६० ॥
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गम्पिणु देव भवणु जिणु बन्देवि । वार-बार अध्यानन निन्देवि ॥ ५॥
कण-बीजें परिद्विड राणउ ॥२४
मोयण-भूमि पट्ट पहाणड । जयणि मायि अस व धुहि । मनुह-मह द वायर ग व सयर सुहिं पिय-जासेंहि । महकइ किसि व सीस-सहासमि
सुतेंहिं ॥३॥
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