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पउमरिट
वारिहें माँ पट्टु व कुझर । दप्पण-मिरिहं व छाया-णावर ॥३n सरसिह मन्छे छ परिमा ससहरु। पुध्व-दिसा व तहण-दिवायरु ॥४॥ गम्घामक हि बिहुर पसाहिय। परिव मावि वन्धेवि साहिय॥ ॥ पुणु गउ पहषण-वीद्ध श्रागन्दें। पर-कहन्दिण-जय-अब-साई॥६॥ फलिह-सिला-मणियाँ (?)थिउ अबइ। हिम-
सिरोल्लि घणु गाई ।। पण्ड-सिल व काम-करि-केसरि। बहुल-पक्खु पुषिणव उपरि८॥
पत्ता माल-कलस-कराड दुचाउ णारित पसरहीं। णाबाई सयल-दिसाउ अण्णय-महाड माहीहरहो ॥५॥
[३] पवर पहुणोऽहिसेयस्स पारम्भए । हम-कुम्भेदि उक्खित-सारस्मए | पवर-अक्षिसेय-तूरं समुप्फालयं । वहु-कच्छेहि माहि ओरालिरं ॥२॥ कहि मिसु-परेहि गामणेहि प्रकार मासं बन्दि-लीगण उचारियं ॥३॥ कहि मि घर-स-वीणा-पचीणा पारा । गन्ति गन्धश्च विजाहरा किण्णरा॥४॥ कहि मि कम होय-माणिक-सिप्पी-
विष्ण।
संकुन्दिओ(?) कम्प(!)-चन्देण आलिम्दभो ॥५॥ कहि मि सिरिखण्ड-कप्पर-कथूरिया-कुखमप्पा-गरण एकमो भाहमो॥५॥ कहि मि अहिसेयन्सअम्बु-धारा-णिवाय
पवाहेण दूराहि एकमो सिनिओ ॥७॥ कहि मि णह-दस्त-फम्फाव-वन्देहिं सोइग्ग-सुराण ।
___णामावलि से समुबारिषा ।।।।
घत्ता एवं जणुरुलावेग पल्हत्यिय कलस गरेसरहों। सुर-जय-जय-सदेण अहिलेय-समएँ जिव जिणवरहीं ॥९॥