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________________ २९४ परमचरिउ काह मि छलिये चलन्तण अन्तेउरं चोर-मुसाक्ली-हार-केजर-कशो कलावहिं गुप्पन्तयं । पहल सिरिखण्ड-कापूर-कस्थूरिया-कुमुप्पील-कालागरुम्मिस्स चिक्लितल्ल - पन्धेसु खुपतये ।। पघल-घय-तोरण-उछत्त-चिन्ध-प्पडायावली-मण्डवरमन्तरालिन्द-पीसन्ध यारे विसूरन्तयं । मुहल-एल-णेउरुग्वाय-नाकार-वाहित्त-मज्माणुलागन्त-हंसेहि चुमन्स-हेला. गई-णिग्गमं ॥६॥ फलिह-मणि-कुष्टिमे भूमि-माए वियहि छाया-छलेग (1) धुम्बिजमा. पाणणं गवर पिसुणो जणो तं च मा पेच्छहीमीए सकाएँ पायम्युहि व छायातयं गलिय-मणि-मेहला-दाम-सकायमपणोषण-जाहिमाणेण मुचन्तयं । कसण-मणि-सोणि-छायाहिं रजिजमाणं व दगुण देवन्तयं ॥८॥ कहि मि पाव-पाडली-पुष्फ-गन्धेम आयढिया छप्पया । णवर मुह-पाणि-पायग्ग-सुप्पलामोय-माहं गया ॥ ९ ॥ तहि मि चल-चामरुच्छोह-दिरछेव-छिप्पन्त-मुख्याधिया । सुरहि-सुह-गन्धवारण मन्दाणुसीएण संजीविया ॥१०॥ पत्ता एम पइछु घर जय-जय-सई इम्द-विमाण । वसुमइ वसिकरें वि णाइ स यंभुव माहिष-गन्दा ॥११॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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