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________________ पसमचरिख संखुहिउ ण लाहिवहाँ छि। भर नभुलिहसु । मन्दोयरि कदिदय मरण। कप्पदुम-साह व कुञ्जरेण ॥४॥ हरिणि व सौहण विरुद्धएण। ससि-पडिम व राहुं कुखएण ॥॥ उरगिन्दि व गरूद-विहङ्गमण। लोगाणि न पसर-जिणागमेण ॥६॥ परमेसरि तो विण भयहाँ जाइ। जिप परिष्ट्रिय धरणि णाई ।।७।। 'रेरे जं किउ महु केर-गाहु । अण्णु धि महएबिहुँ हियम बाहु॥६॥ सं पाव फलेसह परऐं पातु । दहगीर गिलेसद वलुजे साबु' ।। तं णिसुणेवि किय-करमाणेण। मिठमच्छिय सारा-गन्दणेण ॥१०॥ घत्ता 'काई विहाणाण सहुँ अन्तेउरेंण अजा जि पिक्स्वन्तहाँ दहगीवहीं । पर महरविकरमि सुग्गीवहीं ॥१९॥ एम भणेप्पिणु रित रेकारिता 'रक्स दसाणण म. पचारिज ॥१॥ हर सो अङ्ग तुलसह । ह मन्दीयरि पहु सो अवसर'.॥२॥ बं एक वियोहहाँ ण गड रात्र । तं विम पासण-कम्पु जाउ ॥३॥ भाइय अन्धारउ जड करन्ति । बहुरूविणि बहु-रूवई धरन्ति ॥४॥ पिय अगएँ सिबों सिद्धि जे. । 'कि पेस पहु' पमणम्ति एवं ||५|| किं दिजड वसुमइ बसिरेवि। किंदिलउ दिस-करि-प(१) धाषि।।६॥ कि बिजट फणि-मणि-स्यणु लेवि । किं दिजउ मन्दरु दरमलेषि ॥५॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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