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________________ २८४ शिवमच्छेवि एम कइन् । आदत्त चन्धहुँ हुँ हुँ । वहाँ अन्तेरहों णं णत्रिणी-बाहों पउमचरिउ जाहँ गइन्द्र-ससि ताई विय महविं हानिएहिं ॥ ९ ॥ बिच्छादारहणहुँ हुँ ॥ १०॥ धत्ता म उप्पण्णुमहिं हि । मस- गइन्हें हिँ सरु पसन्ते हि ॥ ११ ॥ [3] का विवरण कडिय थाणहो । वर- उजाड़ो ॥१॥ कुसुम-ल्या व सामल- देहिय हार- पयासिरी । म चलाया बलि णं पाउस -मिरि ||२॥ } कवि कडिय णेवर चलवलन्ति सरवर-लपिक कमल म्ति ||३|| कवि कडिद्वय रसना दाम लेखि | सु-निहि सुभङ्गमुषमिकरेवि ||४|| कषि कड्किय तित्रफित खवन्ति । कामाउरि परि I पाडत ||५|| सुरति ॥६॥ कवि कहिय मण भयको जन्ति । किस रोमावलि क विडिय धन-लसुरुवहन्ति । लावण-वारि-पूरें व तरन्ति ॥ ॥ कषिकङ्क्षिय कर-कमलई धुणन्ति । छप्पय रिन्क्रांकि मुच्छलन्स (2) ॥ ८॥ क विक्रयि सब सर जति सुनावलिपि कण्ठएँ धरन्ति ||९|| कवि कविडय 'हा रावण' भणन्ति दीडर सुत्र -पअपसरन्ति ॥ १०॥ घन्ता बहिण हरिण हंस-सयणिजा । अबसें सूरण होन्ति सहेबा ॥ ११॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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