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शिवमच्छेवि एम कइन् । आदत्त चन्धहुँ हुँ हुँ ।
वहाँ अन्तेरहों णं णत्रिणी-बाहों
पउमचरिउ
जाहँ गइन्द्र-ससि ताई विय
महविं हानिएहिं ॥ ९ ॥ बिच्छादारहणहुँ हुँ ॥ १०॥
धत्ता
म उप्पण्णुमहिं हि । मस- गइन्हें हिँ सरु पसन्ते हि ॥ ११ ॥
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का विवरण
कडिय थाणहो ।
वर- उजाड़ो ॥१॥
कुसुम-ल्या व सामल- देहिय
हार- पयासिरी ।
म चलाया बलि
णं पाउस -मिरि ||२॥
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कवि कडिय णेवर चलवलन्ति सरवर-लपिक कमल म्ति ||३|| कवि कडिद्वय रसना दाम लेखि | सु-निहि सुभङ्गमुषमिकरेवि ||४|| कषि कड्किय तित्रफित खवन्ति । कामाउरि परि
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पाडत ||५|| सुरति ॥६॥
कवि कहिय मण भयको जन्ति । किस रोमावलि क विडिय धन-लसुरुवहन्ति । लावण-वारि-पूरें व तरन्ति ॥ ॥ कषिकङ्क्षिय कर-कमलई धुणन्ति । छप्पय रिन्क्रांकि मुच्छलन्स (2) ॥ ८॥ क विक्रयि सब सर जति सुनावलिपि कण्ठएँ धरन्ति ||९|| कवि कविडय 'हा रावण' भणन्ति दीडर सुत्र -पअपसरन्ति ॥ १०॥
घन्ता
बहिण हरिण हंस-सयणिजा । अबसें सूरण होन्ति सहेबा ॥ ११॥