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पटमचरिंड
कुसुमि, कुसुम हिँ अधण करेहि । मणिदीविएँ मणि-दीवर धरेहि ||६|| कापूरि, उहें करपूर-दालि। विद् बुमिएचढावहि विद्यमानि 1101 मुसावलि लहु मुत्तावलीउ। संचूरे वि कुहु रावलीउ ॥८॥ मरगऍ मरगय-वहाँ चडेवि सम्माणु करें कमला लेवि ॥१॥ हले लबलि चन्दण-कडउ देहि । गन्धावलि गन्धु छवि एहि ॥१०|| कुङ्कमलेहिए लइ घुसिण-सिप्पि। भालावणि आलावेहि किं पि ॥११।। किषणरिएँ तुरिड पिगरउ लोहि । तिलयावलि तिलय-पयाइँ देहि ॥१२॥ आयएँ लीलऐं अच्छन्ति लाव। भासपणीहअ कुमार ताय ।।१३।।
घसा
रावण-जुवइ-पशु णं करि-करिणि-घड
अब गिक्षि मीसद्धि। सीहालोयणे माण-कलहिउ ॥१४॥
[] सन्ति-जिनालय
मामरि देपिणु । सन्सि-जिणेन्दहो यषण करेप्षिणु ॥१॥ पासु दसासहो
सुक्क फहन्छय । णाई महन्दहो
मस महागय ॥२|| उहाले वि हत्यहाँ अक्ष-सुत्तु। दससिक सुग्गीव-सुरण वुत्तु ||३॥ 'पड काई राय आउत्तु रम्भु। थिङ णिशलु णं पाहाण-खम्भु ॥३॥ तर क्यणु धीरु को वाऽहिमाणु। सा कवण चिज इट कवणुझा ॥५॥ उपाय लोपहुँ काइँ भनित । पर-णारि जयन्तहाँ कवण सन्ति ॥६॥ किं भाणुकषण-इन्दइ-दुहेण । उ बोलहि एक्केण वि मुहेण ॥७॥ किं लक्लग-रामहुँ भोसरंथि। थिङ सन्ति ममणु पईसरोत्रि' 1160