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पत्रमचरित
छिवाह व मत्थए
मेरु-महीहरु । 'नुन वि मझवि कवणु पईहरु ॥२॥ जं चनकन्त-सलिलाहिसित्तु।। अहि सेग्र-पणाल प फुसिय-चिम ११३।। मं विद्नुम मागय-कन्तिकाहि। घिउ गणु व सुरवणु-पतियाहिं 11॥ जं इन्दगील-माल-मसोएं। आलिम व दिस-भित्ती लीग ।। ।। सहि पामराय-मणि-गणु विहाइ। थिउ अहिणव-मना-राउ गाई ।।६।। जहिं सूरकन्ति-गवनमाणु। गड उत्सरएसहाँ गाई भाणु ||७|| जहि चन्दकन्ति-मणि चन्दियाउ। णव यन्द-उमा बन्दियाउ ||८|| 'अच्चरिङ' कुमार चवन्ति एव । 'बहु-चन्दीहयउ गयणु केम ||५|| पेवेविषणु मुक्ताहल-णिहाय । गिरि-गिभर' मणेचि धुवन्ति पाय॥१०॥
सं दहवयण-घर वर-वायरशु जिह
घत्ता ते कुमार मणि-सोरण-दारे हिं। अ-बुह पहला पच्चाहारे हिं ।।११।।
पहट कश्य
मजामन्तरे। पचाणण
गिरिवर-कम्हरे ॥१॥ पवर-महापइ.
णिवह व सायो। वि-किरणा इव
अस्थ-महाहरे ॥२ धावन्ति के विण करन्ति खेड। रखम्भेहि घिडन्ति मल्लन्ति बेड ।।३।। बहु-फलह-सिला-भित्तिहि मिडेवि । सरहिर-सिर परियन्ति के वि || के वि इन्दणील-गोलंहिं जाय। पंहि मि थिय मुगा र एथु आय ||५|| जसवन्ध-लील के वि दन्ति | उम्ति पडान्त सिलेहि भिडन्ति ।।६।। के वि सूरकन्त-काहि मिण्ण। बहु सुर मल्लेवि पुरवइप ग ||७||