SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ पत्रमचरित छिवाह व मत्थए मेरु-महीहरु । 'नुन वि मझवि कवणु पईहरु ॥२॥ जं चनकन्त-सलिलाहिसित्तु।। अहि सेग्र-पणाल प फुसिय-चिम ११३।। मं विद्नुम मागय-कन्तिकाहि। घिउ गणु व सुरवणु-पतियाहिं 11॥ जं इन्दगील-माल-मसोएं। आलिम व दिस-भित्ती लीग ।। ।। सहि पामराय-मणि-गणु विहाइ। थिउ अहिणव-मना-राउ गाई ।।६।। जहिं सूरकन्ति-गवनमाणु। गड उत्सरएसहाँ गाई भाणु ||७|| जहि चन्दकन्ति-मणि चन्दियाउ। णव यन्द-उमा बन्दियाउ ||८|| 'अच्चरिङ' कुमार चवन्ति एव । 'बहु-चन्दीहयउ गयणु केम ||५|| पेवेविषणु मुक्ताहल-णिहाय । गिरि-गिभर' मणेचि धुवन्ति पाय॥१०॥ सं दहवयण-घर वर-वायरशु जिह घत्ता ते कुमार मणि-सोरण-दारे हिं। अ-बुह पहला पच्चाहारे हिं ।।११।। पहट कश्य मजामन्तरे। पचाणण गिरिवर-कम्हरे ॥१॥ पवर-महापइ. णिवह व सायो। वि-किरणा इव अस्थ-महाहरे ॥२ धावन्ति के विण करन्ति खेड। रखम्भेहि घिडन्ति मल्लन्ति बेड ।।३।। बहु-फलह-सिला-भित्तिहि मिडेवि । सरहिर-सिर परियन्ति के वि || के वि इन्दणील-गोलंहिं जाय। पंहि मि थिय मुगा र एथु आय ||५|| जसवन्ध-लील के वि दन्ति | उम्ति पडान्त सिलेहि भिडन्ति ।।६।। के वि सूरकन्त-काहि मिण्ण। बहु सुर मल्लेवि पुरवइप ग ||७||
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy