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________________ २६४ पहुं पि णिष्परिगाई | सुहिं वि सुदु-दूरयं । रिवरं पिद्धयं । महेसर पिणं । अवियं पि सुन्दरं । सारियं पवित्ययं । एडमचरित्र ॥२३॥ हरं पि-नि अ-विग्रहं पिसूरयं ॥ २८ ॥ अमरं पि कुत्रयं ॥ २९ ॥ गयं विमुख बन्धणं ॥ ३० ॥ अ- वडियं पि दोहरं ॥ ३१ ॥ थिरं पिचिपत्यं ॥ ३२ ॥ ( णाराचं ) धत्ता अवि जिपिन्दर्हो भुत्रणाणन्दह महियले जणु जो करें वि । णासर गाजिब लाअणु अणिमिस-घांगु भित्र मर्गे भषल झागु घरं वि ॥ २३ ॥ [R] नियमस्थ सुष्पिणु दहायणु ॥ ५ ॥ सुग्गोवह हणुवहीं जम्बवहीं ॥२॥ स- गणकहाँ तह गवयहाँ गयहाँ |२| कुमुग्रहों कुन्दहों मीलों णल्हों ॥ ४ ॥ पण तुत्तु 'लइ कि कहूँ ॥ ५ ॥ धि सम्ति जिणालाड पसरेंवि || ६ || रावण-अवरोहण दहवयणु ॥ * ॥ 'साहिय बहुरुविण बिल अड् ॥ ८ ॥ हरि परि एहऍ अवसरें मिड अरि ॥९॥ बहुरुविणि विज्ञान मणु । तो जाय बोल्ल वळें राहवहाँ । सीमित हों यहाँ । तारों रम्महों मामण्डलों । अवरहु मि असेमहुँ किङ्करहुँ । अद्राहि आह परिषि | आराहइ लग्गई एक मणु । तं सुर्णेवि विडोस विष्णषड् । तो पण चिंहउँ गवि तुहुँ ण वि य धन्ता -3 चोर - जार-अहि-बदर हुअ वह डमर हुँ सोइ त्रिणासह वसणु पथासह जो अवहेरि करें गरु । मूल-तलुकख जेम तरु ॥ १० ॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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