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पहुं पि णिष्परिगाई |
सुहिं वि सुदु-दूरयं ।
रिवरं पिद्धयं ।
महेसर पिणं ।
अवियं पि सुन्दरं । सारियं पवित्ययं ।
एडमचरित्र
॥२३॥
हरं पि-नि अ-विग्रहं पिसूरयं ॥ २८ ॥ अमरं पि कुत्रयं ॥ २९ ॥
गयं विमुख बन्धणं ॥ ३० ॥
अ- वडियं पि दोहरं ॥ ३१ ॥ थिरं पिचिपत्यं ॥ ३२ ॥
( णाराचं )
धत्ता
अवि जिपिन्दर्हो भुत्रणाणन्दह महियले जणु जो करें वि । णासर गाजिब लाअणु अणिमिस-घांगु भित्र मर्गे भषल झागु घरं वि ॥ २३ ॥
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नियमस्थ सुष्पिणु दहायणु ॥ ५ ॥ सुग्गोवह हणुवहीं जम्बवहीं ॥२॥ स- गणकहाँ तह गवयहाँ गयहाँ |२| कुमुग्रहों कुन्दहों मीलों णल्हों ॥ ४ ॥ पण तुत्तु 'लइ कि कहूँ ॥ ५ ॥ धि सम्ति जिणालाड पसरेंवि || ६ || रावण-अवरोहण दहवयणु ॥ * ॥ 'साहिय बहुरुविण बिल अड् ॥ ८ ॥ हरि परि एहऍ अवसरें मिड अरि ॥९॥
बहुरुविणि विज्ञान मणु । तो जाय बोल्ल वळें राहवहाँ । सीमित
हों यहाँ ।
तारों रम्महों मामण्डलों । अवरहु मि असेमहुँ किङ्करहुँ । अद्राहि आह परिषि | आराहइ लग्गई एक मणु । तं सुर्णेवि विडोस विष्णषड् । तो पण चिंहउँ गवि तुहुँ ण वि य
धन्ता
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चोर - जार-अहि-बदर हुअ वह डमर हुँ सोइ त्रिणासह वसणु पथासह
जो अवहेरि करें गरु । मूल-तलुकख जेम तरु ॥ १० ॥