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________________ अनपणासमो संधि दूतकार्य में अंग और अंगद बड़ा महत्त्व रखते हैं। प्रस्थानके समय नल और नील बहुत समर्थ हैं। युद्धके कोलाहलमें मधुको मौतके घाट उतारनेवाला लक्ष्मण, हनूमान और विजयादों आप और सुगीन मार्ग है!" ' सुनकर विख्यातनाम रामने दूतका कार्यभार अंगदको सौंपते हुए उससे कहा-"शीघ्र तुम रावणसे जाकर कहो कि अधिक बात बढ़ाने में कोई लाम नहीं है । तुम आज भी कुमार लक्ष्मणके साथ सन्धि कर लो" ॥ १-२॥ [२] अपना संदेश जारी रखते हुए रामने और कहा"अनेक अन्यायोंके विधाता रावणसे यह भी जता देना कि हे रावण ! दूसरे की स्त्रीके अपहरणमें कौन सा पुरुषार्थ है ? यदि तुम रत्नाश्रवके सच्चे बेटे हो, तो क्या तुम्हारा यह आचरण ठीक है ? मैं जब लक्ष्मणका अनुसरण कर रहा था, तब तुम धोखा देकर सीता देवीको ले गये । और अब यह सम हो जाने पर भी, तुममें कुछ बुद्धि हो तो घमण्ड छोड़कर सन्धि कर लो।" यह सन्देश सुनकर, योद्धाओंको चकनाचूर कर देनेवाला लक्ष्मण रामपर बरस पड़ा। उसने झिड़ककर कहा, "जिसकी भुजाएँ और यश इतने ठोस हो, जिसकी सेनामें एकसे एक बढ़कर नरश्रेष्ट हो? फिर श्राप इतने दीन शब्दोंका प्रयोग क्यों कर रहे हैं ? हे देव, आप तो केवल धनुष हाथमें लीजिए और उसपर झर सन्धान कीजिए ! आपकी इन "ओजहीन बातोंसे मैं उतना ही दूर हूँ जिस प्रकार व्याकरण सुनने वाले और सन्धि करने वालोंसे उदन्तादि निपात दूर रहते हैं।" ॥ १-९॥ . [३] वशावर्त धनुष धारण करनेवाले लक्ष्मणके शब्द सुनकर राम भी एकदम भड़क उठे। उन्होंने सन्धिकी बात
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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