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________________ पउमचरिउ I दह (?) - महिय महिय का वितिय । कंजय करि जय करि णाएँ सिब |७| कॉवयरि ||२|| कवि राम राम र २५२ वाल-महन्द्रालाएं णायर-लीं सन्ति-जिणालय दि कह वाहन्यस्वर-आवायें समहर-हंस खुट्टे विघति कमलु जिह || ९ || विमलं रवि रासि हरं सिहरं । बुद्धत्तण- जम्म रणं भरणं । वीसम व रम्म ऋणे भवणे । भाइ व अलिमा भसरे भमरे । तोड व हन्यलयं अल । मइले व उज्जयं जलयं । खड्डे व अवगिलयं गिलयं । जीए व सच सुहं वसु । घन्ता दसाणणो समालयं । लोकश महोच्छवी । विसारिया च बली [ ५ ] सन्ति-हरं तिहरं ॥१॥ वारे व कम्पवर्ण पवर्ण ॥ २ ॥ परइ च कुसुम- अवडं ॥ ३ ॥ (?) समि- समयं स प्रर्थ 18 आहड़ व अक रहे कर- हे ||५|| परि व दिब्बल वलयं ॥६॥ हस व परिमुक-मलं कमलं ||७|| धरइ व अहिठाणं अहि ठाणं ||८|| घसा गुण- पवित्त बिसाल सन्ति-जिणालउ सन्चों लोगों सन्निरु | वरेकहाँ नयाँ पर-तिय-सहीं लङ्का हिवहीं अयमित करु ॥९॥ [ ६ ] पट्टओ जिणाकयं ॥ १११ विताण-वण-मण्डवो ॥२॥ विद्ध तोरणावी ॥३॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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