________________
२२४
पडमचरित
[१९] सच्चशित हरि परमेसरी'। परिमा विसल्ला-सुन्दरी ॥१॥ समतल मुझ पदणे वापसों वि समरिपड तक्खणेण ॥२॥ तेण वि पट्टविउ कइन्दया। जम्बव-सुग्गीयमया ॥३॥ मामण्डल-हणुध-विराहियाहँ। णल-गोलहँ हस्सि-पसाहिया ॥४॥ गय-गवय-गवस्थाणुराई। कुन्देन्बु-महन्द-वसुन्धरा ॥५॥ अवरह मि चिन्ध-उपलक्खियाहूँ। सामन्त रावण-पक्खियाह ॥ केसरिणियम्व-सुय-सारणाहूँ। रविकपणे-घणवाहणार ॥॥ जमघण्ट-अमाण[ 7 ] जममुहाहँ। धूमकरण-दुराणण-बुम्मुहाहूँ ॥६॥
घत्ता अवरह मि असेसहुँ परवाइहुँ दिण्णु विहों वि गम्घ-जछु । अस्यकएँ जाउ पुणण्णधा सपलु वि रामहो तगड बलु ॥९॥
राम-सेपणु णिम्मल-जलेग। संजीविउ संजीवणि-पलेण ॥१॥ त वीर हि घोर साहिएहि। षान्त हि पुष्ठय-पसाहिएहिं ॥२॥ बजन्त हि परहें दि मलेहि। गिमान्ते हि धधले हि मलेहि ॥३॥ शमन हि खुजय-बामणेहि। जग-रियउ पढन्तहि यम्मणेहि ४॥ गायन्त हि अहिणव-गायणेहि। बारम्ते हि वीणा-वायहि ॥५॥ सम्वे हि उष्णिहाविउ अपयन्तु। उहिउ 'केत्तहें रावणु' मणन्तु ॥६॥ विटसेपिपणु उच्चह हरूहरेण। 'किं खलेंण गवि? जिसियरेण ॥५॥ ता दुश्म-इणु -णिलण-दप्प। उव घयणु विसल्लहें तणउ वप्प ॥८॥ बममुहहाँ जाएँ पोसारियोऽसि । लकहें विणासु पसारिओऽसि ॥०॥
घत्ता तं णिसुणे वि जोइय लम्वणण तरखण-मयणाछिया । णं पकएँ सप्लिएँ परिवरिट । पुणु भण्क एँ सल्लियड १०॥