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________________ एकुणसत्तरीमो संधि २५९ किस विघाताने तुमसे बिछोह करा दिया। लक्ष्मणकी माँके रोनेपर समूचा लोक रो पड़ा। भला, करुण काव्यकथा सुन. कर किसकी आँखोंसे आँसू नहीं गिरते ॥५-२|| [१४] भरतने अपना सब दुःख दूर कर दिया। उन्होंने दायें हाथमें तलवार ले ली। रणभेरी बजषा दी, और शंख भी बज उठे । असंख्य सेना तैयार होने लगी। रथ जोत दिये गये, हाथियोंपर पालकी रखी जाने लगी, जय और यशसे युक्त अश्वोंके कवच पहनाये जा रहे थे। इस प्रकार हर्पसे भरकर भरत तैयार हो ही रहे थे कि भामण्डलने उनसे निवेदन किया, "आपके जानेसे भी कोई काम नहीं बनेगा, आप तो ऐसा कीजिए जिससे लक्ष्मण आज ही जीयित हो उठे । यदि आपने विशल्याका स्नानजल दे दिया, तो बताइए कौन-सी सेवा आपने नहीं की" | यह नाना सुनकर भरतन्ने का, "स्नान जल तो क्या, स्वयं विशल्या वहाँ जायेगी। उसने मन्त्रियोंको भेज दिया, वे भी तुरन्त वहाँसे चल दिये, और कौतुकमंगलसे पलभरमें पहुँच गये। मन्त्रियोंने प्रणामपूर्वक राजा द्रोणघनसे निवेदन किया, “लक्ष्मणको जीवनदान दें। विशल्याके स्नान-जलसे कुमार लक्ष्मणके वक्षसे शक्ति निकाल बीजिए" ।।१-९॥ - [१५] यह बातें हो ही रही थीं कि कैकेयी वहाँ आ पहुँची। प्रणाम करके उसने अपने भाईसे कहा, "विशल्या सुन्दरीको फौरन भेज दो। लक्ष्मणको जीवित कर दो, जिससे वह रावण का वध कर रामके मनोरथ पूरा करने में समर्थ हो । जानकीका आनन्द बढ़ सके और वह दुःखकी नदी पाद सके । और फिर विशल्या तो उसे पहले ही दी जा चुकी है, सद्भावोंसे भरपूर उसे उसके हाथ में दे दो।" यह वचन सुनकर राजा द्रोणघन
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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