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________________ २१८ पउमचरित घत्ता रोवम्तिएँ लक्सम-मायरिएँ सपलु लोस रोमानिया। कालण्णएँ कम्य-कहाऐं जिह को ष ण सु मुभाषियड ।।१॥ [ १] परिहरवि सोउ मरहसरेण । करवाल लाइउ दाहिण-करेण ।।१।। रण-भेरि समाहप दिण्ण सल। साहणु सम्णधु अलर सङ्घ ॥२॥ रह जोतिय किय करि सारि-सज। पक्वरिय सुरणाम जय-जसज ॥1 साहसु सण्णासह मरहु जाय। भामण्डलेण विण्णसु ताचें ॥४॥ 'पाइँ गएँण घि सिम्स पाहि कल । तं करि हरि जीवह जेण अज ॥५॥ जइ दिण्णु विस सणड पहष्णु । तोअक्वहिपेसणु नकिउ कवणु'॥६॥ तं वपणु सुणेप्पिणु भण राउ । 'किं सलिलें सजे विसल्ल जाउ' || पषिय महल्ला गय तुरन्त । कउसिकमाल णिबिसेण पत्त ॥८॥ विष्णविड णबेप्पिणु दोणवणु 'जीविउ देव देहि हरिद। णीसरउ ससि वयस्थलहरे जलेग विसालासुन्दारहें' ॥९॥ [१५] एलक्षिय वोल परिचण्ण जाव। केकर सम्पाविय सहि जि ताघ ॥१॥ पवेप्पिणु मायरु बुसु नीएँ। 'करें गमणु विसल्ला-सुन्दरि ।।२।। जीवउ लक्षणु हम्मउ दसासु। परन्तु मणोरह राहवासु ।।३।। आणन्दु पचदउ जापाई हैं। सणु सारड दुपाय-महाण है ।।४।। अण्णु बि बिसाल तहाँ पुष-दिग । करगउ करयलें सम्भाव भि' ||4||
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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