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पउमचरित
एयो साग चारु की जाइ । जहि लेण लिय चणे जाणइ॥४॥ पभग इ महसमुह इमु आवइ । पनिर बल पर-पुणे हि श्रावह ॥ २॥ पत्तिय पहिं रावण जिजइ । गिय-मण सचल सजिइ ।।। किङ्कर-वहा हिँ : जि पहुच्चइ । नाह मि पाहणे ऐहु जि पशुबइ ॥७॥ मिहिउ विहम ल पईसहौँ । लग्गड करयल पाय हलासहीं ॥४॥
घना द्विजउ रज विहीमणहाँ जण वे वि जुज्झन्नि पगप्परु । अम्हहुँ काइँ महाहवेण पर जे परण जार सब-सकरु ॥९॥
[ १] में णिमुणघिणु पण्डि माई । जो किर वम्महु मयाणु मा-रुई ॥१॥ 'देव देव दविन्द-मासणं । माउ कला वि मा दसामणं ॥२॥ आउ विहीसणु परम-सजणी । विणयनन्त दुम्पाय-विसजणी ॥३॥ सज्ञवाद जिण-धम्म-चरलो । सयल-काल-परिचात-बच्छलो ||t मई समाणु एणासि अम्पियं । तं रेमि हलहरहों जं पियं ।।५।। जह महु युक्त ण किउ राणं । तो रिउ-साहणे मिलमि राण' ॥६॥
पत्ता
नं णिमुप्पणु राहण पसिट दण्डपाणि हकारउ । आउ विहीपणु गह-सहिउ एयारामु गाई अङ्गारउ ||७||
[१२] जय-जय-सर मिलिउ बिहीसणु । विहि मि परोप्पर किस संमासणु ॥१॥ मणइ रामु ‘णउ पइँ कजामि । गोसावण्ण ला भुशवमि ॥२॥ सिस तोडमि रावणहाँ जियन्तौँ । संसमि पाणश कयन्तहों ॥३॥