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पन
तं साहिबइ-ल- पसरा । कोबग्गि-पलिप्स फुरियवयणा | गत पधाइय तक्खणेण । "खल खुद्द पाव दक्खबहि मुटु । सं पिसुर्णेष कोषणक - अछि से पम- मिड मग्गु वछु ।
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कह वि परोप्पर सम्यर्वे वि गिरिषरें जहर विन्दु जिह
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कवि धणुहर-मेलिय सरेहिं । सम्वैदि णिप्पसरु णिरस्धु किउ । णास ि अरिवर-विहु घतिय धरणिय क्षणङ्गसरा । सु पण पुणब्बसु गीत-मउ | अलहन्त दत्त कृष्णहॅ तणिय । अन्तेवरु लिट विमण- मणु । अस्थाणु वि सोह ण देइ किह ।
कहिउ परिन्दद्दों किक्करेहि
सिद्धि जेम गाणेण चिणु
विजाहर पहरण गहियन्करा ॥ ॥ दट्ठाहर भू-मङ्गुन
-जयणा ॥ ४ ॥
स- जल जलय गणणेण ॥ ५ ॥
कहिँ कण्ण ऐबिणु जाइ तुहुँ" ॥ ६ ॥
सी गन्द यह बलिउ ॥७॥ पाच भवसमें कम्य दलु ॥ ८ ॥
घत्ता
स धयग्गु स हेइ स वाहणु । उत्थरि पडीधर लाइणु ॥१॥
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तिणमाणन्दही किरेहिं ॥१॥ पाडिउ विमाणु परिछिण्णु धड ॥ २ ॥ तं विसरेष्पिणु पण्णलडु ||३३| पणं सरय-मियतें मोण्ह वरा ॥४॥ पणं हरिणु सरासणि सासु गउ ||५|| किर विपत्त पुरि अप्पणिय || ६ || यं तुहिण- छिन्तु सयवन्त धणु ||७|| जोवणु विणु काम कहाऍ जिह ||८||
घत्ता
"जलें भलें गयणयले गविगी । तिह अम्मूद्दि क्रष्ण ण दिट्ठी " ||९||