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________________ उसका अनुपमेयर भार वहनामत था। वह असटिमो संधि वह सौभाग्यको राशि और सौन्दर्यको निधि थी। मानो वह उत्सबके अनमबनको आनन्दभरी दृष्टि हो। मानो शरद्पन्द्रकी सुन्दर प्रभा हो, मानो विभ्रम उत्पन्न करनेवाली कामकथा हो, मानो सुन्दर चन्दनवृक्षकी लता हो। वह गर्वेश्वरी रूपकी सीमाओंको पार कर चुकी थी। उसका अनुपमेय शरीर अतिशय रूपसे शोभित था। षह कामदेवके धनुषकी लीलाका भार वहन कर रही थी। भौंहे बाप और लोधन-गुणको जब वह अपने दृष्टि-धनुषपर लाती तो उससे मनुष्य घूमने लगता और बड़ी कठिनाईसे अपने प्राण बचा पाता ।।१-९|| [८] एक दिन पूर्णवसु नामका विद्याधर जिसका कि यश धरतीमें दूर-दूर तक फैला हुआ था, अपने मणिमय विमानमें बैठकर विहार कर रहा था । उस विमानकी पताका इवामें फहरा रही थी । घूमते-घूमते वह वहाँ आया जहाँ अनंगवाणके समान वह सुन्दरी थी। वह बाला पूनोंके चन्द्रके समान सुन्दर थी और अभिनव केलेके गाभकी भाँति कामल । सुन्दर महल में बैठी हुई ऐसी सोह रही थी मानो लक्ष्मी कमलबनके भीतर बैठी हो । मालती-मालाके समान सुन्दर हाथोंषाली अनंगसराकी आँखोंसे वह विद्याधर आहत हो गया। धनुषके बिना, स्थानके बिना, डोरी और शरसन्धानके बिना, अस्त्रके बिना ही वह इतना आहत हो गया कि जर्जर हो उठा। दग्ध होकर पुनर्वसु कुछ भी नहीं गिन रहा था। आँखोंके तीरसे आहत वह अपनी भयंकर तलवारसे डराकर, सब लोगोंके देखते-देखते उस कन्याको अपने विमानमें चढ़ाकर ले गया ॥१-२॥ [२] अभिनव सुन्दर कोमल हाथों वाली अनंगसराको यह विद्याधर जबर्दस्ती ले गया। पवन और मनके समान गतिवाले
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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