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________________ १९२ पउमचरिय घत्ता तहाँ सुरवर परमेसरों किय चन्दण मरह गरिन् । गिरि-कइलाएँ समोसरणं णं पदम जिजिन्दहों इन्हें ॥ १० ॥ ॥ [ ६ ] जिणु वन्दै चि वन्दिउ परम- रिसि । जे दरिलिय-दसत्रह- धम्म - दिलि ॥१॥ जो पच महत्व णिब्वहृणु ॥ २ ॥ तिर्हि गुन्तिहिं गुत्तर न्शि- बरु ॥ ३ ॥ तो जो बूसह परिसह-भर-सहनु । जो तब गुण-सक्षम-नियम- धरु | जोतिहिंसलिय जो संसारोवहि- णिम्महणु । जो क्रिडिकिडि जन्त-पुदिप णयणु। जो उण्हालएँ अत्तापिङ | जो वम्मद मसाहिं मीसणेहिं । जो मेरु-गिरिं व धोरत्तणण | सो मुणिवरु चड णाण-धरु "काइँ विसल्लऍ तर किपर । सं वयणु सुणेस्थिणु मणइ रिसि "सुणु पुग्न विदेहें रिद्धि-परु । तिहुश्रण भणन्दु तिग्धु निवड वह सुय णामेणासर । ऐि जो रुक्ख मूले पाउस सह ॥५॥ जो सिसिर-काले बाहिरें सयणु ॥ ६ ॥ जो चन्द्रायणि अतीरणि ॥७॥ बीरासण- उकडुस्वहिं ॥ ८ ॥ जो जलधि व गम्भीर ॥९॥ घत्ता पणवेष्पिणु मरहँ बुचइ । सें माणुसु बाहिएँ सुच" ॥१०॥ [ ७ ] यि खयहाँ जेण अण्णाण-नी फामेण पुण्डविण ण णय ३२ ॥ लीला - परमेसर चकवड़ ||३|| उम्मिल-ओहर कृष्ण घर ॥ ४ ॥ r-förter 11511
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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