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पउमचरिय
घत्ता
तहाँ सुरवर परमेसरों
किय चन्दण मरह गरिन् ।
गिरि-कइलाएँ समोसरणं णं पदम जिजिन्दहों इन्हें ॥ १० ॥
॥
[ ६ ]
जिणु वन्दै चि वन्दिउ परम- रिसि । जे दरिलिय-दसत्रह- धम्म - दिलि ॥१॥ जो पच महत्व णिब्वहृणु ॥ २ ॥ तिर्हि गुन्तिहिं गुत्तर
न्शि- बरु ॥ ३ ॥
तो
जो बूसह परिसह-भर-सहनु । जो तब गुण-सक्षम-नियम- धरु | जोतिहिंसलिय जो संसारोवहि- णिम्महणु । जो क्रिडिकिडि जन्त-पुदिप णयणु। जो उण्हालएँ अत्तापिङ | जो वम्मद मसाहिं मीसणेहिं । जो मेरु-गिरिं व धोरत्तणण |
सो मुणिवरु चड णाण-धरु "काइँ विसल्लऍ तर किपर
।
सं वयणु सुणेस्थिणु मणइ रिसि "सुणु पुग्न विदेहें रिद्धि-परु । तिहुश्रण भणन्दु तिग्धु निवड वह सुय णामेणासर ।
ऐि
जो रुक्ख मूले पाउस सह ॥५॥ जो सिसिर-काले बाहिरें सयणु ॥ ६ ॥ जो चन्द्रायणि अतीरणि ॥७॥ बीरासण- उकडुस्वहिं ॥ ८ ॥ जो जलधि व गम्भीर
॥९॥
घत्ता
पणवेष्पिणु मरहँ बुचइ ।
सें माणुसु बाहिएँ सुच" ॥१०॥
[ ७ ]
यि खयहाँ जेण अण्णाण-नी फामेण पुण्डविण ण णय ३२ ॥ लीला - परमेसर चकवड़ ||३|| उम्मिल-ओहर कृष्ण घर ॥ ४ ॥
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