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पउमचरित
हुभ्रषहो च बालोलि-भासुरो । हर सणे व कुही वि मासुरो ॥४॥ कंपरि व्य उद्धसिय-कन्यरो ! गारो लस नाम-धरी ॥५॥ 'तं बिहीसणा पई पनम्पियं । दहमुहस्ल पकयाइ जं पिथं ॥६॥
पत्ता
को तुहुँ के बोल्लावियउ को सो लमषणु को किर रामु । जइ तहाँ अप्पिय जय-सुय तो ह प यहमि इन्दइ णामु' ॥७॥
मणिमुवि विहाँसणु जम्पइ । विरुवउ गिन्दिउ सोयह जं पह ॥१॥ पप्फुल्लिय-अरविन्द-प्पहरण । दुद्धर-गरवरिन्द-टप्प-हरणें ॥२॥ पुरम-दाणव-विन्द-प्पहर” । णीसरन्त-वलहदाँ पहरणे ॥३॥ अणुहरमाण-वाय-फरुपक्कहीं। जे मनन्ति मराफरु साकहाँ ॥४।। से रणे जाणे णियारं चि सकहाँ। तुम्हहुँ मजहों सति परिसकहाँ ॥५॥ जम सम्वु मुहें छुद्धु किनम्तहाँ । मिलेंवि अससे हिँ का कियं तहाँ ॥६॥ जेण खरहीं सिरु खुदिउ जियन्तहों। घउदह-सइसे हिं का कियं तहाँ ॥७॥ सो हरि सारहि जसु पघराहउ । दुज्जउ केण परजिउ राहज ॥६॥
घत्ता
अग्णु वि हणुकहाँ काइँ किड तुम्हहँ तणएँ पइट्ठट जो वणे । दक्खबस्तु णिय-चिन्धाई जिह वियतु कण्णागिहें जोरपणे' ॥९॥