SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० जिह राष्णु मेलॅवि घरि राम्र | तं मिवि सिरे ! निम्मति इन्दड़ भरें कु मल्ल । दोच्छन्त परोप्यरु मिडिय के वि। दोहरणाराएँ हिँ उत्धरन्त । विहि मि जगहि गहिम हिं कुड़म-दणुवइ-दारण - समस्थु । अथएँ सुर-धणु पायखन्तु । अणवर णीर-धार सुखन्तु । सं पेक्खवि तारावर पलि । वायस तक सुग्गीवेण मुक्कु । याओलि धूलि पाहण मुअन्तु । दुग्धा-पट्ट लोन्तु सब्ब । दुग्बाउ आउ नं बल-विणासु । सुम्पीड र बत seeta सिंह पहरु पहरू तज्र लुहमि पासु ॥४ विजाहर पर-परमेसरेण ॥५॥ को सुर्डे को राष्णु कक्णु (?) बोल' | सु-पणा महँ चावहूँ करेंहिं लेवि ॥ * ॥ णं पल-जलब नव-जलु मुअन्त ॥ ८ ॥ धत्ता हाइड गयणु महासरे हि । पाउस काले व खलहरे हिं ॥९॥ [] इन्दइणामैहिउ वारुमत् ॥१॥ गजन्य जलड सखि तन्तु ॥२॥ अहिय -कलाव के क्कार-रेन्तु ॥३॥ धूमउ णं माहऍण वित्तु ॥ ४ ॥ णं पय-काल पर वहाँ ॥ ५ ॥ धय-छत्तदण्ड-दण्डुदुदन्तु ॥ ३ ॥ मोबन्तु महारण अतुल - गन्न ॥ ७ ॥ तेण वि आखिर जाग- वासु ॥ ८॥ घा बेडिड पवर-सरेण हि । जाणावर जोर जिह ॥ १ ॥ | I |
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy