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________________ पंचसद्विमा संधि कोई घूम रहा था, किसीका शरीर मुड़ रहा था, किसीके हाथसे किवाड़ छूटा जा रहा था। नींद आनेके कारण, कोई घुर्रा रहा था । कोई ऐसे सो रहा था, मानो गर्भके भीतर हो। तब इसी अन्तरालमें किष्किन्धाराजने प्रतिबोधन अस्त्र छोड़ा। तुरन्स सेना जागकर उठ खड़ी हुई। वह चिल्ला उठो, 'कुम्भकणं कहाँ हैं, कुम्भकर्ण कहाँ है ?' सेना सामने मुखकर उसकी ओर बौड़ी, मानो समुद्रका जल घरतीपर रेंगता हुआ, चला जा रहा हो ॥२-५॥ [६] जब लंकाराज रावणने देखा कि युद्ध में शत्रुसेना उछलकूद मचाती हुई चली आ रही है वो उसने अपनी थरथराती हुई निर्मल चन्द्रहास तलवार निकाल ली, उस समय ऐसा लगा मानो हजारों सूर्योंका उदय हो गया हो। वह शत्रुसेनासे भिड़ता न भिड़ता कि इतने में तीन प्रचण्ड वीर, उसके सम्मुख आये। ये थे इन्द्रजीत, मेघषाहन और वनकर्ण । वे प्रणामके अनन्तर हाथ जोड़कर खड़े हो गये। उन्होंने निवेदन किया, "हम लोगोंके जीते-जी, क्या आप अपने हाथोंसे आक्रमण करेंगे।" इस प्रकार अपने स्वामीका सम्मान कर, ऋद्ध होकर वे वोनों योद्धाओंसे मिट गये। चन्द्रोदरके पुत्रसे बजकर्ण, और भामण्डलसे मेघवाइन । सुमीवके सन्मुख इन्दजीत इस प्रकार आया, मानो मन्थनके लिए मेरुपर्वत समुद्रके सम्मुख भा गया हो। पुरुषोंको पुरुषों से, और अश्वोंकी अश्वोंसे मिहन्त होने लगी । रथोंसे रथवर, और गजोंसे महागजों की ॥१-६॥ [७] संग्राममें विजयलक्ष्मीका श्रृंगार करनेवाले, दशानन के पुत्र इन्द्रजीतने सुग्रीवको ललकार दी। वह त्रिमुवनकंटक हाथीपर सवार था, और उसने इन्द्रको दबोचा था। उसने कहा,
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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