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________________ परम चरित धणय-पुरन्दर-थरहरावणो । सरणाय-मय-परिहराणी ॥४॥ दाणविन्द-दुइम-डरावणो। अमर-मणोहर-बहुअ-रावणी ॥७॥ दाणे महाहरणे तुरावणो । णिसुणिउ जं जम्पन्तु रावणी ॥६॥ भणई विहीसणु कुइय-मणु वयंणु णिएवि दसाणण-करउ । 'मरण-काले प्रासपणे थिएँ सम्वहाँ होइ विसु विचररउ ॥७॥ पुणु वि गरुड संताउ विहीसणे । काई णिवारिउ ण किउ बिहीसणे ॥१॥ काई गरिष्ऽप्पाण सोसहि। एण णिहण पइटु त्रिसोसहि ॥२॥ जण्य-विटेहि-धीय पह-सारिय । परै सयणहुँ भधित्ति पहमारिय ॥३॥ एह ग सीय वणे हिय मल्ली। सध्चहुँ हिंग, पइट्टिय मल्ली ॥ १ ॥ एह ण सीय सांय-संपत्ती । सरह बजासणि संपत्ती ॥५|| एह ण सीय दाव पर सीहाँ। गरगरल्थल-बहल-रसीहाँ ॥६॥ एह ग सीय जोह जमरायहीं। केवक हाणि जसुज्जम-रायहाँ ॥७॥ पत्ता पन्दउ ला स-तोरणिय अणुणहि रामु पमाहि जुन्छ । जाणइ सिविणा-रिद्धि जिह का हुआ ण होइ ण होसई सुना ॥ ते सुणेवि सत्तुत्त-मरणो। स-पुरन्दर-बिजयन्त-मदशो ॥१॥ रयणासव-माहिणन्दणो। दहमुह-दिविचिसाहि-णन्दा ॥२॥ इन्दई णिन-मणे विस्तुओ। जेण हणुठ पहरंदि रुडलो ॥३॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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