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________________ पउमरिड पउ बगाएँ देन्ति पक्षासति । पहरन्ति ग पहाणु पीसरन्ति ।।३।। दरिसम्ति मराफर णेष पुष्टि । जीविउ सिविलन्ति ण चाव मुट्टि।। मेछन्ति वाग ण मुन्ति धीरु। परिहउ रक्स्वस्ति गणिय सरोका। छग्गा गाराउ | लें कल । बरु वा वमणु म होइ बङ्गु ॥६॥ गुशु छिमाा सीमग दुग्गिवार। धवपड़ ग हिमाण पुरिसपारु॥ भोषुण्ण-सुरक्रम-पुस्बिस। रतु मजइ भजइ गउ मरष्टु ॥१॥ घन्ता पविधकरण-पक्ष-पडिफूलहुँ विहि को गरुआरउ जिद्द बजी भर-सखुलहुँ । पर विजिण ण जिमड़ ॥९॥ [३] एस वि मिउष्टि-मगुर-वयण । ते बाहुबलिम्द-सोहन्दमण ॥ १॥ अभिष्ट वे वि वदामरिस । गिरिमलय-सुघल सह-सरिस ॥२॥ हरिदमणे 'पहरु पहर' मण चि ! सिरे मोग्गर-वाणं आहमें चि ॥३॥ महि-मण्डलं पाजिड वाहुवति। सोसण व परिषदन्त-कलि ॥॥ पुणु धेयण लहें वि भयारेण । भार? राहध-बिहारेण ॥५॥ परिवारज भाहउ मोग्गरण। वस्थ गं इन्दीवरेण RAH
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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