SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चट्ठियो संवि संग्रह होता है, उसी प्रकार सेनाओंके पास लाकूल आदि अस्त्र थे। जैसे व्याकरण किया और पदच्छेद आदि होते हैं, उसी प्रकार सेनाओं में युद्ध हो रहा था, जैसे व्याकरणमें संधि और स्वर होते हैं, उसी प्रकार सेना में स्वरसंधान हो रहा था, जैसे व्याकरण में प्रत्यय विधान होता है, उसी प्रकार उन सेनाओं में युद्धानुष्ठान हो रहा था। जैसे व्याकरणमें, प्र, परा आदि उपसर्ग होते हैं, उसी प्रकार सेनाओंमें घोर बाधाएँ आ रही थीं। जैसे व्याकरण में जश् आदि प्रत्यय होते हैं, उसी प्रकार दोनों सेनाओं में 'या' ( ज ) की चाह थी। जिस प्रकार व्याकरण में, पद-पद पर लोप होता है, उसी प्रकार सेनाओं में शत्रुलोपकी होड़ मची हुई थी। जैसे व्याकरणमें एक, दो, बहुवचन होता है, वैसे ही उन सेनाओं में बहुत-सी ध्वनियाँ हो रही थीं। जिस प्रकार व्याकरण अर्थसे उज्ज्वल होता है, उसी प्रकार सेनाएँ शस्त्रोंसे उज्ज्वल थीं, और एक-दूसरेके वल-अबलको जानती थीं। जिसप्रकार व्याकरणमें 'न्यास' की व्यवस्था होती है उसी प्रकार सेनामें भी थी। जिस प्रकार व्याकरण में बहुत-सी भाषाओंका अस्तित्व है, उसी प्रकार सेनाओं में तरह-तरह की भाषाएँ बोली जा रही थीं। जैसे व्याकरणमें दीर्घ समास अधिकरण में शब्दोंका नाश होता है, वैसे ही सेनाओं में विनाश लीला मची हुई थी। उन सेनाओंका लगभग, व्याकरणके समान आचरण था, दोनोंके चरितमें निपात था, व्याकरणमें आदि निपात है, सेनामें योद्धा अन्तमें धराशायी हो रहे थे ॥ १-६ ॥ [२] निशाचरीकी उस भयंकर लड़ाई में रामरूपी सिंह बोदरके निकट पहुँचा । प्रचंड धनुष हाथमें लेकर वे आपस में लड़ने लगे। वे दोनों ही देवताओंके भारी युद्धका भार उठानेमें तत्पर थे। दोनों ही पैर आगे बढ़ाकर पीछे नहीं छूटते थे । ११५
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy