SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ि | रहा था। कोई बोखा, "मेरी कल इन्द्रजीत से भिड़न्त होगी ।" कोई कहता, "मेरी मेघवाहनसे होगी ।" कोई कहता- "मेरी सुत और सारणसे होगी ।" कोई कह रहा था, "जब तक मैं युद्धमें कुंभकर्णका काम तमाम नहीं कर लेता. तबतक आपकी जय नहीं बोलूँगा” । कोई कहता, "मैं मन और मारीचसे लड़गा। कोई कहता, “मैं राहुके समान सूर्य और चन्द्रसे युद्ध करूँगा” | कोई कहता, "महोदरकी मौत मेरे हाथों होगी, " कोई कहता, "मैं दरको यसके मुख में फेंक दूंगा ।" कोई कहता, “मैं तुम्हारी आज्ञा मानूँगा और जम्यू मालीको यमके शासन में भेजकर रहूँगा।" कोई कहता, “मैं अश्व, गज और रथ बाहनवाली रावप्णकी सेनासे जाकर भिड़गा ।" इसी बीच आकाश में सवेरे सूर्योदय हो गया, मानो निशानारीका गर्म ही प्रकट हो गया हो। शीघ्रगामी सूर्यने मानो संसारको परिक्रमा कर अपने हाथोंसे अपना आधिपत्य संपादित किया #112-2211 चौसठवीं संधि विजय लक्ष्मीको प्रहण करने में समर्थ, वे दोनों सेनाएँ आपस में टकरा गयीं। दोनोंके पास निशाचरोंका विनाश करनेवाले अस्त्र थे। दोनों ही युद्धोचित उत्साह से रोमचित थीं । [१] अपने-अपने वाहनोंके साथ, वे सेनाएँ ऐसे भिड़ गयीं, मानो व्याकरणके साध्यमान पद ही आपस में भिड़ गये हों । जैसे व्याकरणके साध्यमान पोंमें क ख ग आदि व्यञ्जनका ८
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy