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________________ पउमचरित को वि महावलु पर-बलु णिन्दह । को वि मणा 'महुकल इम्दा ॥२॥ को वि मग 'महु तोयवाहणु' को वि भणह 'स-मुउ मा सारण|३|| को नि मणइ 'गउ पइँ जयकारमि | जाम ण कुम्भयपणु रणे मारमि' ।। को वि मगइ 'हउँ मय-मारिहुँ । भिडाम राहु जिह पदाःबहुँ ।।१।। को वि भणइ 'महु मरइ महोअरु । छुहमि कयन्त-षयणे बजोधर' ।।६।। को वि भणेइ 'करमि त पेसणु। पेसमि मम्बुमालि जम-सासणु' ।।७।। को वि मणइ 'हय-य-रह-वाणु । मछु आवमाउ राषण-साहणु' ।।। साम्ब विहाणु माणु गहें उग्मउ । स्यमिह तपउ गम्भु गं णिग्गउ ||५|| पत्ता जगु सपायह सिग्घ-गइ। पाइँ सइंभुक पाशिवा ॥१०॥ सम्पाइल [६४, चउसहिमो संधि] दणु-दारण-पहरण-हस्थई रण रस-रोमन-विसहइँ जयसिरि-गहण-समस्थई। वलर वे वि अस्मिथई ।। [ भन्मिई वे वि स-धाहणाई। गिह ता तेम्व इल-सहाई। ] वापरण-पया व साहगाई ॥१॥ जिह तारे वेम रिप-विग्गहाई ।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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