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पउमचरिट
जो परतिय-परदचाहिसणु । मणे परिचिन्तवि एम विहीसणु ॥ अहिमुडु वलिंग दसाणण-रायहीं। शं गुण-णिबहु दोस-सङ्घायहीं ॥२॥ "मो मो भू-भूमण मड-माण । स्खलहु मि खल सजणहु मि समण ॥३॥ रायण किण्ण गहि महु ययगई। किरण णियहि जन्दल, मयणई ॥४॥ किं स-गेहु णिय-गकरु ण इच्छति । किं वजासणि सिरेय पहिच्छति ॥५॥ कि देवायति सेणु दिसा-वलि । किं उर धरहि जलण-जालावलि ||६॥ कि आरोड हि रामव-केसरि । किं जाणन्तु ग्वाहि बिस-मारि ॥७॥ किं गिरि समु बरुष भाण्डहि । कि चार साल यह छह ॥६॥ कि बिहडन्तउ कक्जु ण सहि । तइयएँ गरएँ भाउ किं वन्धहि ॥१॥ एक्कु अजसु आगगेक्कु भमङ्गन्छ । आण देन्तह पर गुणु कंवलु' 101
धत्ता भणड दसाणणु 'भाइ सुणि जाणमि पंक्समि परमही सङ्कमि । णवर सरीर वसन्ताइ पश्चिन्दियई जिणेवि ण समि' ॥११॥
[1] सो अण-मण-यणाहिरावणो । पर-पगारवर-हरिणादशवणो ॥१॥ दुन्दर-धरणिधर-धरावणो । मह-थर-ऋउमद्ग-करावा ॥२॥ दुञ्ज मजण-मग-जरज्ञरावणों। करिवर-कुम्मथल-कप्परावणो ॥३॥