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कहराय-सयम्भुएक-किउ
पउमचरिउ चउत्थं जुज्झकण्ड
[ ५७. सत्तवण्णासमो संधि ] हंमदी थिएँ राम-बले खोड जाउ णिसियर-सङ्घायहौं । झत्ति महीहर-सिहरु जिह णिवदिउ हियर दसाणग-रायहाँ।
सूरही सन्दु सुगेचि रउडों। खुहिय लक्षणं वेल समुदहाँ ॥१॥ पहम् काल अगेयइँ जाणउ । मणॆण विसपशु विहीसणु राणा ॥२॥ 'कुल-सेलु समाहर वज्ज । पुरि णन्दन्ति णट्ट विणु का ॥३॥ कल्ले जि मस्उ ण किउ णिवारिज 1 एहि दूसन्धवउ णिरारित ॥१॥ तो वि सहें परिहम्छामि । उपपहें थियउ सुपन्) लावमि ॥५॥ जई कया कि उनसमइ दसा गणु । पावें छाइड पर-महिलाणणु ।।६।। एम वि जद्द महु ण क्रियउ छत्तउ । तो रिउ-साहणे मिलमि गिरुत्तर ॥॥ अप्पाणु वि ण होइ संसारिउ । परिहरिएवउ पारावारिस ॥८॥
पत्ता
सुहि में सूलु परिक्रूणउ परु जै सहोयरु जी अणुभत्ता । भोसह तूरुप्पण्णउ यि चाहि सरीरहों का वि घसा' ॥५॥