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छायाकोसमो संधि
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भीषणता बढ़ रही थी। बलिष्ठ गजघटा संघर्षमें लोट-पोट हो रही थी। खतोंकी खनखनाहट भयंकरता उत्पन्न कर रही थी । किलविडी वरवीरोंके उरमें घुसेड़ी जा रही थी। उनकी भहिं और उनकी भंगिमा विकट आकार को थीं। आँखें लाल हो रही थीं। प्रहारोंके प्रकृष्ट भार और व्यापारसे वह संग्राम दुदर्शनीय हो उठा था । योधागण हलकार हुँकार और ललकार में व्यस्त थे । गजोंके दंताय पदाति सैनिकोंको लग रहे थे। वक्षःस्थल विदीर्ण होनेसे उनके अंगअंग विकल थे। निकली हुई आँतों की मालाओं से वह युद्ध व्याप्त था। ऐसे उस अत्यन्त भयंकर युद्धमें हनुमान और माहेन्द्र दोनों आपस में जा भिड़े। दोनों प्रचण्ड आघातोंसे संहार कर रहे थे । दोनों ही गज के कुम्भस्थल विदीर्ण कर रहे थे। दोनों आकाशगामी विद्याधर थे। दोनों यशके इच्छुक थे। दोनोंके अधर काँप रहे थे । इस प्रकार अपने-अपने आतंकी मालासे वह युद्ध व्याप्त हो रहा था । ऐसे उस अत्यन्त भयंकर युद्धमें हनुमान और माहेन्द्र दोनों भिड़ गये। दोनों ही प्रचण्ड आघातों से संहार करनेवाले थे, दोनों ही अपने-अपने वाहनोंपर आरूढ़ होकर त्रिविष्टप और प्री की तरह लड़ने लगे ॥१-१०॥
[५] तब पहली ही भिन्तमें महेन्द्र पुत्रने एक दम विरुद्ध होकर हनुमानके ध्वज-पटपर तीरोंकी थर्राती बौछार छोड़ी। परन्तु हनुमानने उसके तीर जालको उसी प्रकार नष्ट कर दिया जिस प्रकार निशान्त होनेपर सूर्य अन्धकार के पटलको नष्ट कर देता है, जैसे परम योगी मोहजालको खाक कर देता है वैसे ही मायावी आगसे उसने उसके तीरोंको नष्ट कर दिया। भागसे प्रदीप्त होकर आकाशतल जल उठा । समस्त शत्रु सेना नष्ट होने लगी । कहीं किसीका छत्र था तो कहीं किसीकी पताका का अप्रभाग |