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छयालीस संधि
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तो उसने मेरी विद्या छेड़कर मुझे यहाँ फेंक दिया | जन्मांधको तरह मैं अब दिशा भूल गया हूँ और इसीलिए यहाँ अकेला पड़ा हूँ ।" इस प्रकार सीता देवीके अपहरणको बात सुनकर महागुणो सुग्रीवने बार-बार रत्नकेशीका आलिंगन किया तथा खून संतुष्ट होकर उसे मनचाही आकाशगामिनी विद्या दे दी। फिर सुप्रीव रत्नकेशीको वहाँ ले गया जहाँ दुर्मन राम थे। इस प्रकार वह मानो बलपूर्वका यशःपुंज ण कर होगा
[६] आकर, विद्याधर-कुल- भुवन- प्रदीप सुग्रीवने रामका अभिनंदन करते हुए निवेदन किया, "देव-देव ! अब आपने दुखरूपी महासरिताका संतरण कर लिया है। यह सीता देवीका पूरा पूरा वृत्तान्त जानता है ।" उसके वचन सुनकर राम कहकहा लगाकर विभ्रमपूर्वक खूब हँसे, और फिर उन्होंने कहा, "अरे वत्स वत्स, तुम मुझे आलिङ्गन दो । आज तुमने सचमुच मेरे जीवनको आश्वासन दिया है ।" यह कहकर रामने उसका सर्वाग आलिङ्गन कर लिया और फिर पूछा, "कहो कहो, किसने सीता देवीका अपहरण किया है । तुमने उसे मृत देखा या जीवित ।" यह सुनकर विद्याधर इस प्रकार बोला मानो जिनेन्द्र के सम्मुख गणधर ही बोल रहा हो कि "हे देव-देव ! वह करुण क्रन्दन करती हुई, 'हा राम ' ' हा लक्ष्मण' कह रही थीं। रावण, मेरी विद्याको छेदकर उन्हें वैसे ही ले गया जैसे गरुड़ नागिनको या सिंह हरिणीको पकड़कर ले जाता है ॥१-||
[ १ ] परन्तु उस भयभीत कठोर कराल कालमें भी किसी तरह सीताका शील खंडित नहीं हुआ था । परपुरुष उसका चित्त नहीं पा सके वैसे ही जैसे मूर्ख व्याकरणका भेद नहीं कर पाते । " विद्याधरका कथन सुनकर रामने उसे कंठा, कंटक और कैटिसूत्र
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