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चपालीसमो झंधि
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[२] तब कुमारने कहा-"प्रतिहारी, तुम जाकर सुग्रीवरी कहना कि जो जम्बूद्वीप के स्वामी हैं, वे वनमें भटक रहे हैं और तुम निश्चिन्त होकर अपना राज कर रहे हो? जिस प्रकार तुम्हारा काम साधा गया, अच्छा है, तुम राम का उपकार करो। नहीं तो अच्छा है कि मैं उपकार कहे और जिस प्रकार कपटसुग्रीवको, उसी प्रकार तुम्हें मारता हूँ।" कुमारने जो संदेश दिया, द्वारपाल ने जाकर वह वार्ता कह दी–"हे देवदेव, जो युद्ध में अनिष्ट हैं, वह लक्ष्मण द्वार पर खड़े हैं। वह महाबली रामके आदेशसे आए हैं, मानो मनुष्यके रूपमें प्रच्छन्न यमही हैं। उन्हें प्रवेश दूं या नहीं, उनसे जाकर क्या बात कहूं ?" यह वचन सुन कर सुग्रीव प्रतिहार का मुख देखने लगा। क्या किसी ने गाथा में प्रसिद्ध को मेरे द्वार पर भेजा है ।।१६।।
[३] क्या वह लक्षण (लक्ष्मण) जो विशुद्ध लक्ष्य होता है ? क्या वह लक्षण जो गेय-निबद्ध होता है? क्या वह लक्षण जो प्राकृत काव्य में होता है ? क्या वह लक्षण जो व्याकरण में होता है ? क्या वह लक्षण जो छंदशास्त्र में निर्दिष्ट है ? क्या वह लक्षण जो भरत को गोष्ठी में काम आता है ? क्या वह लक्षण जो स्त्री-पुरुषों के अंगों में होता है ? क्या वह लक्षण जो अश्वों और गजों में होता है ?" तब प्रतिहार ने पुनः निवेदन किया, "देव-देव, इनमेंसे एक भी लक्षण नहीं है प्रत्युत यह वह लक्ष्मण है जो दशरथका पुत्र है । वह लक्ष्मण है जो निशाचरका नाशक है । वह लक्ष्मण है जो शम्बुक कुमार का वधकर्ता