________________ छप्पण्णासमो संधि 253 लीलापूर्वक जिनेन्द्र का समवसरण जा रहा हो और उसमें बारबार देवागमन हो रहा हो, जसही थोड़ी दूर सैन्य चला है कि इतने में लकानगरी दिखाई दी है जो आरामों, सीमाओं, सरोवरों, अनेक सुन्दर नंदनवनों, प्रकाशद्वारों, गोपुरी, घरों, रथ्याओं, तिगड्डों, चौकों-चौराहों, सुहावने नारीनिवासों, चार तरह के रास्तों, द्यूतों, बाजारों, लम्चे बिसारों, चैत्यघरों और उड़ते हुए दीर्घ चिन्हों के द्वारा जो (शोभित था)। हवा से प्रतिकूल उड़ते हुए ध्वजसमूह दूर से ऐसे मालूम होते थे मानो राम और लक्ष्मण ने रावणके मनको डगमगा दिया हो // 6 // [15] जब विद्याधरों ने लंकाद्वीपको देखा तो उन्होंने हंसद्वीप में अपना डेरा डाला। हंसरथ को युद्धके आंगनमें जीतकर और मानो शत्रु के सिरपर तलवार रखकर वे लोग स्थित हो गए। पसीनेसे लथपथ सैनिक ठहरा दिए गए। रथ छोड़ दिए गए और घोड़े खोल दिए गए। विमान ठहरा दिए गए, बैल बाँध दिए गए। कवच सहित तूणीर और युद्ध सज्जा छोड़ दी गई। नाना विद्याधर समूह ऐसे मालूम हो रहे थे मानो हंसद्धीप पर हंसोंका समूह ठहरा हो / मानो ब्रह्मा, रुद्र, और केशवके साथ इन्द्र ने अपना प्रयाण स्थगित कर दिया हो। इस अवसर पर कोई सुभट इस प्रकार कहते हैं "हे देव, आज मैं सुंदरयुद्ध करूँगा।" एक और सुभट कहता है-“हे भीरुहृदय मित्र, उतावली क्यों कर रहे हो ?" / पत्ता-कितने ही दूसरे अपने भवनों और स्त्रियों के साथ सुख से रमण करते हैं तथा आराधना-पूजा और अर्चाकर, अपनी बाहुओं से प्रणाम करते हैं।