________________
छप्पण्णासमो संधि
२४३ शंख बज रहे थे। इस तरह सुग्रीव .रत्नासे दीप्त दो विमानोंमें राम और लक्ष्मणको ले गया। बन्दियोंके जय-जयकार शब्दके साथ, विमानमें बैठे हुए राम और लक्ष्मण ऐसे मालूम होते थे मानो देवोंसे घिरे हुए प्रवर विमानोंके साथ, इन्द्र और प्रतीन्द्र हा ।।?-६||
[1] कितने ही के पास, अंबारीसे सजी हुई, सुविशाल सुन्दर घण्टायुगलसे गाती हुई वटा ! : जो नौरोज मंडप. विकलांग और परिपूर्ण मदसे विशिष्ट थी । सिंदूरके पंखसे उसका शरीर पंकिल था और जो शीत्कारके स्फार और गर्जनसे गम्भीर थी । महावतसे रहित और निरंकुश वह वेश्याकी भॉति सुन्दर रूपसे मल्हाती हुई जा रही थी। कईके पास रथ और रथियोंके समूह एक दूसरेको चूर-चूर करते हुए चल पड़े। वे अश्वों, सारथी कपिध्वज और तरह-तरह के अस्त्रोंसे समृद्ध थे । कईके पास पैदल सेना थी, जो बजते हुए तूणीरों और बाणोंसे भयङ्कर थी। महा धनुषोंसे सहित थी । वह, उसम खगोंको निकालकर घुमा रही थी | कईके पाससे हींसती हुई उत्तम अश्वोंकी सेना निकली। वह सुकलत्रकी तरह सुकुलीन और पदसंचारको नहीं भूल • रही थीं ||१-६॥
[६] एक ओर, समरकी भिडन्तमें धीर, वीर योधा गरज रहे थे । एकने कहा "मैं समुद्र सोख लूँगा।" एक और ने कहा, "मैं निशाचरराजका शोषण करूँगा ।" एक औरने कहा, "मैं सेनाको पकड़ लूँगा ।" एक औरने कहा, "मैं कुम्भकर्णको पकड़ेगा।" एक औरने कहा, "मैं मेघनादको"। एक औरने कहा"मैं भटसमूहको पकड्गा " एक औरने कहा, "हे मित्र! सुनो। मैं अपने हायसे सीता समके हाथमें दूंगा।" एक औरने कहा,