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एवणासमो संधि
१५३ [४] क्टवृक्षको फेंककर, तब हनुमानने ककेली वृक्ष उखाड़ लिया, और उसे अपने दोनों हाथोंमें इस प्रकार ले लिया मानो बाहुबलिने भरतको ही उठा लिया हो। लाल-लाल पल्लव और पत्तोंसे शोभित वह वृक्ष कामिनीफे करकमलोको भाँति दिखाई दे रहा था, लिखे हुए फूलोंके गुच्छोंसे वह ऐसा लग रहा था मानो धरतीको केशरका अवलेप किया जा रहा हो, वह अशोक वृक्ष तरह-तरहके पक्षियोंसे सेवित हो रहा था। ऐसे गुणांसे सहित उस अशोक वृक्षको हनुमानने मानो रात्रणका मान दलन करनेके लिए ही उखाड़कर फेंक दिया। फिर उसने नाग चम्पक वृक्ष अपने हाथ में लिया, वैसे ही जैसे दिग्गजने दिशावृक्षको ले लिया हो । वह वृक्ष आकाशके अनुरूप प्रतीत हो रहा था। ( आकाश की भाँति ) वह भ्रमर रूपी ज्योतिषचक्रसे गतिशील था, और नये पल्लवोंके ग्रहसमूहसे व्याप्त था। खिले हुए सुमन ही उसका नक्षत्र मंडल था । गगनांगणमें व्याप्त उस वृक्षको रावणके अभिमान की भाँति भग्न कर दिया। इसी प्रकार चंपक वृक्षको फककर, बकुल और तिलक वृक्षाको खींचकर उसने धरतीको ताडित किया । ( उस समय ) वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मदोन्मत्त महागजने अपने दोनों आलानस्तंभोंको उखाड़ दिया हो ।।१-१०॥
[५] चम्पक, तिलक, वकुल, वटपादप और पारिजानको जब हनुमानने भग्न कर दिया तो चार उद्यानपाल गरजते हुए सहसा उसकी ओर दौड़े । सबसे पहले शत्रुसेनाके बलको चूर करनेशला दंष्ट्रालि हाथमें गढ़ा लेकर दौड़ा । वह उत्तर द्वारका रक्षक था, और उसका यश भुवन भरमें प्रसिद्ध था । मदमाते गजोंको मसल देनेवाला और शत्रुपक्षमें हलचल उत्पन्न करनेवाला