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एमकूणपणासमो संधि
कमलनालों की तरह उत्तम पादतलों से, सौभाग्यशाली सिंहली नखोसे, विकार उत्पन्न करनेवाली ऊँची अंगुलियों व सुडौल गोल एडियोंसे, अलंकृतथीपर्वत जैसी विस्तृत मायावी उदर-पेशियोंसे, ढलानयुक्त जांघोंसे, करभ (कैट) के समान कटिंप्रदेशसे, कांचीपुर की उत्तम करधनीसे, पेटकी गम्भीर नाभिसे, शृगारयुक्त सन्दर पीठसे, एलपुरी गोल स्तनोंसे, मझोले वक्षस्थलसे, पश्चिम देशक भुजशिखरोंसे, द्वारावतीके (कड़ों) बाहुलोंसे, सिंधुदेश के गोल मणिबंधोंसे, अगर देश की सरह मन से लतपीया, विदा आनन, ओष्ठपुट (गोग्गाडिका के समान ??)से, कर्णाटक देशकी सुन्दर दशनावलिसे, कारोहण की नारियों जैसी जीभसे, उज्जैन वासिनियों की तरह दोनों भौंहोंसे, चित्तको आकर्षित करनेवाले भालसे, काशी के पूज्य कपोलोंसे, कन्यकुब्ज की स्त्रियों के समान कानोंसे, पंक्तिबद्ध विनत दाहिनी बोर मुके हुए केश विशेषसे, उसकी रचना की गई थी।
घत्ता-अथवा बहुत विस्तार से क्या, सुदर बुद्धिवाले, खेद रहित विधाता ने एक-एक वस्तु लेकर उसकी रचना की है, उसे गढ़ा हे ॥१-१६।।
[8] (हनुमानने देखा कि) रामके वियोग से दुमंन सीता देवीकी आँखें भरी हुई हैं। उनके बाल खुले हुए और अस्त-व्यस्त व्यस्त हैं। उनके हाथ गालों पर हैं।