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पदमचरित
पत्ता पर गाह परमिय हउँ समरें वरें एवहि पाणिग्गहण करें। णिय-णाम लिहेप्पिणु मुक सरु मं दूउ विसजिद पियहाँ परु ॥६॥
[१४] झाष पहाणि वायह अक्सर । ताम णिसरिउ हिय सुहार । तेन तेन तेन चित्तं ॥॥३॥ तेण वि गरुअउ गेड करेपिणु ।
वाणु विसजिड़ णामु लिहेप्पिणु ।। सेम सेन सेम चित्तें ॥॥२॥ सरु जोएँ चि पचर-धणुचरीएँ । परिमोस लकासुग्दरी ।।३।। अवगूहु पणि थिरथोर-चाहु । परिहमउ विनाहर - विवाहु ।। रेहइ सुन्दरि सहुँ सुन्दरेण । वर-करिणि णाई सहुँ कारेण ॥५॥ ण रस सम्म सहुँ विणयरेण । णं सुरसरि सहुँ रयणापरेण ॥६॥ पं. सीहिणि सहुँ पञ्चाणणेण । जियपउम गाई सहुँ लक्षणेण ||७|| अह खणे खणे वणिज्यन्ति काई । पं पुणु वि पुष्प वि ताई ताई ।।।
घता पुरथम्तर हणुवं सुरिच बलु हिम्मोहॅषि थम्मवि किट अचलु । सुरवहु-जण -मण-संतारणहाँ में को वि कहेसह रावगहों ।।६।।
[१५] थम्भत्रि पर-चल परिवि णिय-बलु । उच्चारेपिण जिणवर - मालु ॥ तेन तेन सेन विते || पनडु समीरणि सुट्छ रमाउले ।
लझासुन्दरि- ओरएँ राउले ॥ तेन तेन तेन चित्त ॥४॥२॥ राहिं मागेप्पिणु भुस्य-सोक्नु । संघल्ल बिहाणएं दुषले दुक्ख ।।३।। आरच्छिय सुन्दरि सुन्दरेण । वनमाल लाई ललीहरेण ||