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________________ अचालीसमो संधि १०५ हैं। एक और तीरसे उसका छत्र छिन्न भिन्न हो गया मानो हंसने कमलको ही छिन्न-भिन्न कर दिया हो । या मानो वह भोजन करते हुए सूरवीरका खंडित कराल सुवर्णथाल ही हो। उस छत्रको धरती पर गिरता हुआ देखकर लंकासुन्दरीने थर्राता हुआ अपना खुरपा फेंका। किंतु हनुमान उसे उसी प्रकार नहीं झेल सका जैसे कुमुनि तपस्या नहीं झेल पाते। शत्रुपक्ष के मानका भंजन करनेवाले दुर्गे दस पीले खुसे इटुफान धनुष्की चोरी कट गई । उसकी कमान भी वैसे ही टूट गई जैसे जिनेन्द्रके आगमसे मिथ्यात्व हट जाता है ॥२-६॥ [ ११ ] धनुष टूटनेपर हनुमान सहसा खिन्न हो उठा। उलटकर उसने [ दूसरा ] धनुष ले लिया और तीरोंके आलसे उसने लंकासुंदरीको उसी प्रकार ढक दिया जिस प्रकार दुष्काल धरती को आच्छन्न कर लेता है । किन्तु लंकासुन्दरीने अपने नागसे दिशाओंके अन्तराल ढँक लेनेवाले हनुमान के तौर समूहको ऐसे काट दिया मानो परमजिनेन्द्र ने मोहपटलको ही नए कर दिया हो। एक और तीरसे उसने हनुमानका कवचभेदन कर दिया। किसी प्रकार वक्षःस्थल बच गया, और हनुमान आहत नहीं हुआ । कवचके छिन्नभिन्न हो जानेपर देवसमूहमें कलकल ध्वनि होने लगी । दिनकरने हनुमानसे कहा कि अरे तुम महिलाके द्वारा किस प्रकार जीत लिये गये। यह वचन सुनकर पुलकितबाहु हनुमानने सूर्यको भर्त्सना करते हुए कहा- "अरे दिनकर, तुम यह क्या कह रहे हो । एक जिनयरको छोड़कर दूसरा कौन है जो गरजा हो और साथ ही महिलासे पराजित न हुआ हो" ||१६|| [ २ ] जबतक हनुमान कुछ और उत्तर दे, तबतक लंकासुन्दरीने उल्का अब छोड़ा। किन्तु हनुमानने एक ही तीरमें उसके :
SR No.090355
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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