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अडचालीसमो संधि अश्वमुखने अपने हाथमें भाला ले लिया, और हनुमानके मन्त्री पृथुमतिसे कहा, "मर मर, ठहर ठहर, मेरे साथ युद्ध कर, आओ जरा एक दूसरेकी सेनाका प्रमाण समझ-बूझ लें ।" यह सुनकर. पृथुमति इस प्रकार मुड़ा मानो मदगजको देखकर मदगज ही मुड़ा हो। आघात करते हुए, तथा राम और रावण नाम लेकर वे दोनों युद्धमै रत हो गये । विद्याधरोके आयुधांस वे इस प्रकार प्रहार कर रहे थे मानो आकाशतलमें विद्युत्समूह ही धूम रहा हो । इतनेमें हनुमानके अनुचर पृथुमतिने समर्थ होकर, भौह टेढ़ी करके अश्वमुखको आहत कर दिया। गदाके प्रहारसे वह धरतीपर लोटपोट हो गया। [यह देखकर ] देवता आकाशमें कल-कल शब्द करने लगे ॥१-६।।
[६] इस प्रकार गदाके आघातसे अश्वमुखका पतन होनेपर वसायुद्ध आधे ही पलमें क्रुद्ध हो उठा। अपने निष्ठुर प्रहारोंसे वह हनुमानकी सेनाको भग्नप्राय करने लगा। सभी सेनाके प्रणष्ट होनेपर भी हनुमान अकेला ही वहाँ डटा रहा । सिंहलीलाका प्रदर्शन करता हुआ वह मानो अपनी सेनाको' यह पाठ पढ़ा रहा था कि भागो मत । वह कठोर. असिकर्णिक, भाला, गदा और मुद्गरोंका लेकर, वेगपूर्वक उछलने लगा । असुरसंहारक कितने आयुधोंको लेकर वायुध भी बरस पड़ा। तब पुलकितबाहु हनुमानने समर्थ होकर अपना दुर्निवार, तीक्ष्ण, दुर्दर्शनीय
और भीषण चक्र मारा | उस चक्रसे उच्छिन्न होकर बनायुधका सिर कमल युद्ध स्थलमें गिर पड़ा। फिर भी उसका धड़, अमर्षसे भरकर दौड़ा किंतु वह दस पग चलकर ही धरतीपर गिर पड़ा ॥ १-६॥