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अहवासीसमो संधि [२] तब उसने पृथुमति नामके मंत्रीसे 'पूछा, "समरके महाभारकी इच्छा किसने की है, ( किसका इतना साहस है ), कालसे प्रेरित होकर यह कौन ललकार रहा है, जो मेरे सम्मुख आकर मुझे जानेसे रोक रहा है।" यह बचन सुनकर मंत्रीने कहा "क्या तुम्हारे मनमें भी इतनी बड़ी भ्रांति है, जबसे रावण ने रामकी गृहिणी सीता देवीका अपहरण किया है, तभीसे परबलके लिए दुदर्शनीय विभीषणने लंकाके चारों ओर, आसाली नामकी इस जन-पूज्य आसाली विद्याको रक्षाके लिए नियुक्त कर दिया है" | यह बात सुनकर पवनपुत्र, पुलकसे कण्टकित शरीर हो उठा, और बोला "मर, तेरा भी मान चूर-चूर करूंगा, मुड़मुड़, आसाली विद्या, मुझसे युद्धकर"। जो तुमने हमेशा गलगर्जन किया है उसे अभिमानशून्य मत करो | वहीं तुम हो, और मैं भी वहीं हूँ। यह रण है, जरा क्षात्रभावसे हम लोग एक क्षण युद्ध कर लें" ॥१६॥
(३) साहसी युद्ध में समर्थ हनुमानके हाथमें गदा थी, वह कवध पहने था | रथगजका वाहन था उसके पास । वह वानर राज सेनासहित, सिंहकी तरह रुककर, गरजकर, फिर साहस पूर्वक दौड़ा, तदनंतर, सेना और विमानको छोड़कर, केवल गदा लेकर अकेला ही वह, “मुड़ो-मुड़ो" कहता हुआ विद्याके सामने आकर ऐसे खड़ा हो गया, मानो सिंह ही उत्तम इथिनी के सम्मुख आया हो । या, पहाड़की चोटीपर वनका आघात हुआ हो, या दावानलकी ज्वाल-मालापर पानीकी बौछार हुई हो। उस विशालकाय आसाली विद्याने इनुमानको निगल लिया, उसके भीतर प्रविष्ट होता हुआ हनुमान ऐसा शोभित हो रहा था मानो रात होनेपर सूर्य ही अस्त हो रहा हो। तब उस वीरने